सं० १९८७ उत्तर नूतन ५८१ सुमन में नवरस पवन के पाचनतम गार', उपा के संजु मनोहर 'हास', सुमन से सीखे लब संसार 'शांत' चित करना मधुर विकास। मन मेरा तेरी ओर 'भयानक' भातुरता श्रावेश खींचता 'अद्भुत' गति चितचोर 'वीर' ता के सुंदर संदेश। शैद् बन 'विकृत' करेगा भानु युवक-सा अ'करण' विभव-विभोर ; फूल ! पर मत निज गौरव भूल, धूल मिल फिर फूलोगे फूल । नाम--( ४३८६ ) नवलकिशोर झा 'नवल', सोन्हौली, तारापुर (मुंगेर)। जन्म-काल-सं० १९६२। विवरण-सुकवि । उदाहरण--- कविते! वाणी-चीणा-झनकार कहें, कविवर-हिय का उद्धार कहें; मंगलमय संजु मलार कहें, या सुख-सरिता की धार कहें ! वर बिमल बसंत-बहार कहें, या संसृति-शोभा-सार कहें ; क्या सु-रति-हृदय का मार कहें या कामिनि-कांत-दुलार कहें ! जीवन-नौका - पतवार कहें, संकरित सुप्रेम-सितार कहें; क्या नव सुंदरि-गार कहें, या अगर भ्रमरि-गुंजार कहें !