पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/११८

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मुण्डकोपनिषद् [ मुण्डक ३ युक्तात्मा-नित्य किं तर्हि ? तद्ब्रह्मैवाद्वयमात्मत्वेन प्राप्त कर -फिर क्या होता है ? उस अद्वयब्रह्मका ही आत्मभावसे प्रतिपद्य धीरा अत्यन्तविवेकिनो अनुभव कर, धीर यानी अत्यन्त युक्तात्मानो नित्यसमाहित- विवेकी और खभावाः सर्वमेव समस्तं शरीर- समाहितस्वभाव पुरुष शरीरपातके समय भी सर्वरूप ब्रह्ममें ही प्रवेश पातकालेऽप्याविशन्ति भिन्ने घटे कर जाते हैं; अर्थात् घटके फूट घटाकाशवदविद्याकृतोपाधिपरि- जानेपर घटाकाशके समान वे अपने अविद्याजनित परिच्छेदका परित्याग च्छेदं जहति । एवं ब्रह्मविदो कर देते हैं । इस प्रकार वे ब्रह्मवेत्ता ब्रह्मधाम प्रविशन्ति ॥ ५॥ ब्रह्मधाममें प्रवेश करते हैं ।। ५ ।। ज्ञातज्ञेयकी मोक्षप्राप्ति किंच-- तथा- वेदान्तविज्ञानसुनिश्चितार्थाः संन्यासयोगाद्यतयः शुद्धसत्त्वाः। ते ब्रह्मलोकेषु परान्तकाले परामृताः परिमुच्यन्ति सर्वे ॥ ६ ॥ जिन्होंने वेदान्तजनित विज्ञानसे ज्ञेय अर्थका अच्छी तरह निश्चय कर लिया है वे संन्यासयोगसे यत्न करनेवाले समस्त शुद्धचिन पुरुष ब्रह्मलोकमें देहत्याग करते समय परम अमरभावको प्राप्त हो सब ओरसे मुक्त हो जाते हैं ॥ ६ ॥ वेदान्तजनितविज्ञानं वेदा वेदान्तसे उत्पन्न होनेवाला विज्ञान वेदान्तविज्ञान कहलाता है । न्तविज्ञानं तस्यार्थः परमात्मा उसका अर्थ यानी विज्ञेय परमात्मा