पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/३८

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मुण्डकोपनिषद् [मुण्डक १ , स्फुलिङ्गिनी विश्वरुची च देवी लेलायमाना इति सप्त जिह्वाः ॥ ४ ॥ काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुलिङ्गिनी और विश्वरुची देवी-ये उस ( अग्नि ) की लपलपाती हुई सात जिह्वाएँ हैं ॥ ४ ॥ काली करालीच मनोजवाच काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता या च सुधूम्रवर्णा सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुलिङ्गिनी स्फुलिङ्गिनी विश्वरुची च देवी और विश्वरुची देवी-ये अग्निकी लेलायमाना इति सप्त जिह्वाः। लपलपानी हुई सात जिह्वाएँ हैं । काली- काल्याद्या विश्वरुच्यन्ता लेलाय- से लेकर विश्वरुचीतक-ये अग्निको माना अग्नेहविराहुतिग्रसनार्था सात चञ्चल जिह्वाएँ हवि-आहुति- एताः सप्त जिह्वाः॥४॥ का ग्रास करनेके लिये है ॥ ४ ॥ विधिवत् अग्निहोत्रादिसे स्वर्गप्राप्ति एतेषु यश्वरते भ्राजमानेषु यथाकालं चाहुतयो ह्याददायन् । तं नयन्त्येताः सूर्यस्य रश्मयो यत्र देवानां पतिरेकोऽधिवासः ॥ ५ ॥ जो पुरुप इन देदीप्यमान अग्निशिखाओंमें यथासमय आहुतियाँ देता हुआ [ अग्निहोत्रादि कर्मका ] आचरण करता है उसे ये मूर्य- की किरणें होकर वहाँ ले जाती हैं जहाँ देवताओंका एकमात्र स्वामो । इन्द्र ] रहता है ॥ ५॥