पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/४३

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खण्ड २] शाङ्करभाष्यार्थ बहुधा वर्तमाना तथा- अविद्यायां वयं कृतार्था इत्यभिमन्यन्ति बालाः । यत्कर्मिणो न प्रवेदयन्ति रागा- त्तेनातुराः क्षीणलोकाश्च्यवन्ते ॥६॥ बहुधा अविद्यामें ही रहनेवाले वे मूर्खलोग 'हम कृतार्थ हो गये हैं। इस प्रकार अभिमान किया करते हैं। क्योंकि कर्मठलोगोंको कर्मफल- विषयक रागके कारण तत्त्वका ज्ञान नहीं होता, इसलिये वे दुःखार्त होकर [ कर्मफल क्षीण होनेपर ] खर्गसे च्युत हो जाते हैं ॥९॥ अविद्यायां बहुधा बहुप्रकारं अविद्यामें बहुधा-अनेक प्रकारसे वर्तमाना वयमेव कृतार्थाः कृत- विद्यमान वे अज्ञानी पुरुष 'केवल प्रयोजना इत्येवमभिमन्यन्त्यभि- हम ही कृतार्थ—कृतकृत्य हो गये मानं कुर्वन्ति बाला अज्ञानिनः । हैं। इसी प्रकार अभिमान किया करते हैं। क्योंकि इस प्रकार वे यद्यमादेवं कर्मिणो न प्रवेदयन्ति । कर्मीलोग रागवश यानी कर्मफल- तत्त्वं न जानन्ति रागात्कर्मफल- सम्बन्धी रागसे बुद्धिके अभिभूत रागाभिभवनिमित्तं तेन कारणेन हो जानेके कारण तत्त्वको नहीं आतुरा दुःखार्ताः सन्तः जान पाते इसलिये वे आतुर- क्षीणलोकाः क्षीणकर्मफलाः दुःखात होकर कर्मफल क्षीण हो स्वर्गलोकाच्च्यवन्ते ॥ ९॥ जानेपर वर्गसे च्युत हो जाते हैं ॥९॥ । इष्टापूर्त मन्यमाना वरिष्ठं नान्यच्छेयो वेदयन्ते प्रमूढाः। नाकस्य पृष्ठे ते सुकृतेऽनुभूत्वे- मं लोकं हीनतरं वा विशन्ति ॥१०॥