पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय अंक चाणक्य-सुन, अर्थशास्त्रकारों ने तीन प्रकार के राज्य लिखे हैं- एक राजा के भोसे, दुसरा मंत्री के भरोसे, तीसरा राजा और मंत्री दोनों के भरोसे । सो तुम्हारा राज्य तो केवल सचिव के भरोसे है, पिर इन बातों के पूछने से क्या ? व्यर्थ मुंह दुखाना है । यह सब हम लोगों के भरोसे है, हम लोग जानें। (गजा क्रोध से मुंह फेर लेता है ) २०० ( नेपथ्य में दो बैतालिक गाते हैं ! प्र० बै:- अहो यह शरद शंभ है पाई। कास फूल फूले चहुँ दिसि तें सोइ मनु भस्म लगाई ॥ चंद उदित स्पेइ सौस अभूषन सोभा लगत सुहाई। तासों रंजति घन पटली सोह मनु गज खाल बनाई। फूले कुसुम मुंडमाला सोइ सोहत अति धवलाई । राजहंस सोभा सोइ मानें हास - विभव दरसाई ॥ अहो यह शरद शंभु बनि भाई । पौर भी २१० हरौ हरि-नैन तुम्हारी बाधा । सरद अंत लखि सेस-अंक ते जगे जगन सुभ साधा। कछु कछु खुने, मुंदे कछु सोभित आलस भरि अनियारे। अरुन कम से मद के माते थिर भो जदपि ढरारे ।। सेस सीस मनि चमक चौंधन तनिकहुँ नहिं सकुचाही। नींद भरे श्रम जगे चुभत जे नित कमला-उर माहीं ॥ हरौ हरि-नैन तुम्हारी बाधा। . दूसरा बै०-(कडने की चाल में) अहो, जिन को विधि सब जीव सों बढ़ि दोनों जग काज । अरे, दान-सलिलबारे सदा जै जीतहिं गजराज ॥ २२० अहो, भुक्यो न जिनको मान ते नृपवर जग सिरताज ।

अरे, सहिंह न आज्ञाभंग जिमि दंतपात मृगराज ।