सके। उनका यह कथन कि सामंत बटेश्वर को चंद ने भाषा में लिखने के कारण संक्षेपतः सोमेश्वर लिखा होगा' युक्तियुक्त नहीं है क्योंकि पृथ्वीराज विजय नामक संस्कृत महाकाव्य में भी 'जयति सोमेश्वर-नन्दनस्य' लिखा है।
साथ ही पृथु तथा पृथ्वी भी स्पष्टतया विभिन्न हैं।और पृथ्वीराज के किसी विशाखदत्त नामधारी पुत्र के होने का पता नहीं है। प्रोफेसर हिल्ड की खोज से पृथु का पाठांतर भास्कर दत्त मिलने से वह प्रयत्न निमल हो गया और अब वह उपेक्षणीय है।
इसके अतिरिक्त नाटककार के जन्मस्थान और जन्म तथा मृत्युकाल का कुछ भी पता नहीं है। प्रोफ़ेसर विल्सन का कथन है कि विशाखदत्त दक्षिण के निवासी नहीं थे।' इस कथन का कारण उस उपमा को बतलाया है जिसका अर्थ है 'हिम के समान विमज्ञ मोती।' ५० काशीनाथ त्र्यंबक तैलंग इस अंश को उदघृत करते हुए लिखते हैं कि भारतीय अर्कियो- बौजिकल सवे' की रिपोर्ट में उत्तरी भारत के वराह अवतार के मंदिरों तथा उनके भग्नावशेषों का विवरण पढ़ते हुए मुझे भी यह विचार हुआ कि इस नाटक के भरतवाक्य के अनुसार कवि का उत्तरी भारत का ही निवासी होना समीचीन है। महामहोपाध्याय पं० हर प्रसाद शास्त्री की सम्मति है कि गौड़ीय रीति की बहुलता के कारण कवि गौड़ देशीय ज्ञात होते हैं और भयेवर शब्द से बटेश्वर नगर के शिव-भक्त के वंश में हो सकते हैं। प्रोफेसर विधुभूषण गोस्वामी ने भी उनको उत्तरी भारत का निवासी मानते हुए लिखा है कि नाटक में एक को छोड़ कर सभी स्थान उत्तरापंथ ही
पूर्वोक्त कारणों तथा विद्वानों को सम्मति से यह अवश्य निश्चित हो मया कि कवि विशाखदत्त उत्तरी भारतवर्ष के निवासी थे। यह भी निश्चित सा
१.हिन्द थियेटर जि० २. पृ० १८२ टि, । यह हिम की उपमा सभी प्रतियों में नहीं मिलती। २. मुद्राराक्षस की भूमिका पृ० १३ । ३.५० जीवानंद विद्यासागर संपादित मुद्राराक्षस का प्रारंभ । ४. मलय को दक्षिण का माना है। इस पर आगे विचार किया जायगा।