पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१४५

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मुद्राराक्षास ना मलयकेतु-और संदेश भी बड़े प्रामाणिक सिद्धार्थक से ३३ सुनना, यह आर्य ने लिखा है। राक्षस-कैसा संदेश और कैमी चिट्ठी ! यह हमारा कुछ नहीं है। मलयसेतु -तो मुहर किसकी है। राक्षस-धूर्त लोग कपटमुद्रा भी बना लेते। भागुरायण-कुमार. ! अमात्य सच कहते । सिद्धार्थ क ! चिट्ठी किमकी लिखी है ? सिद्धार्थक-(राक्षस का मुह देखकर चुपचाप रह जाता है )। भागुरायण-चुर मत रहो। जी कड़ा करके कहो। सिद्धार्थक-आर्य ! शकटदास ने । राक्षस-शकटदास ने लिखा तो मानों मैंने ही लिखा। मलयकेतु -विजये ! शकटदास को हम देखा चाहते हैं। भागुरायण-(आप ही माप) आर्य चाणक्य के लोग कि निश्चय सममे हुए कोई बात नहीं करते। जो शकटदास आक यह चिट्ठी किस प्रकार लिखी गई है यह सब वृत्तांत कह देगा। मलयकेतु फिर बहक जायगा। (प्रकाश ) कुमार ! शकटदास अमात्य राक्षस के सामने लिखा होगा तो भी न स्वीकार करेंगे, इससे उनका कोई और लेख मार अक्षर मिला लिए जाएँ। मलयकेतु-विजये ! ऐसा ही करो। भागरायण-पौर मुहर भी प्रावै। मलयकेत -हा दोनों लाओ। प्रतिहारी --जो आज्ञा ( बाहर जाती है और पत्र और मुहर लेकर आती है ) कुमार! यह शकटदास का लेख और मुहर है। . मलयकेतु - देखकर और अक्षर और मुहर का मिलान करके आ ! अदर तो मिलते हैं। राक्षस-(आप ही आप.) अक्षर निःसंदेह मिलते हैं: किंतु शकटदास हमारा मित्र है, इस हिसाब से नहीं मिलते । तो क्य शकटदास ही ने लिखा? अथवा-