पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१५

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स्थापित हो चुका था। चेदिनरेश उपरिचार के पुत्र वृहद्रथ के लिए ही पहले मगध-नरेश की पदवी लिखी मिलती है। इसका पुत्र जगसंध था और पौत्र सहदेव भहाभारत युद्ध का समसामयिक था। सहदेव के अनंतर २३ पीढ़ी तक इस वंश का मगध में राज्य था। इसके अनंतर अवंती-नरेश चंडप्रद्योत का मगध पर अधिकार हुश्रा और मगध-नरेश एक प्रवर उनकी अधीनता में रहने लगे।

इसके अनंतर गिरिव्रज के शैशुनाग-वंशी राजाओं का मगध पर अधिकार हो गया और प्रत्येक राजा राज्य बढ़ाने में सफल प्रयत्न हुआ। शिशुनाग, काकवर्ण, क्षेमधर्मन् , क्षत्राजीत और बिंबसार ने क्रमशः राज्य किया। इस वंश का पहला प्रतारी राजा बिंवसार हुआ। यह गौतम बद्ध और महाबीर तीर्थकर का समकालीन तथा अंग देश का विजेता था। इसने अपनी जीवितावस्था ही में पुत्र को राज देदिया पर पुत्र ने लोम-वश इसे मरवा डाला। बिंबसार के साला कोशलराज प्रसेन्-जित् ने अजातशत्रु पर बदला लेने के लिए चढ़ाई करदी पर अंत में सन्धि हो गई और प्रसेन जित् ने अपनी कन्या अजातशत्रु को ब्याह दी। अजातशत्रु पहले बौद्धों का कट्टर विरोधी था पर अन्त में बुद्ध के उपदेशों को सुनकर बौद्ध हो गया। इसने लिच्छिवियों पर भी विजय प्राप्त की और उन्हें दबाने के लिए गंगा और सोन के संगम पर पाटलिपुत्र नामक दर्ग बनवाया। यह इस वंश का प्रथम सम्राट था।

अजातशत्रु का उत्तराधिकारी दर्शक हुआ, जिसके अनंतर उदयाश्व या उदायी गजा हुआ । इसने पाटलिपुत्र के पास कुसुमपुर नामक नगर बसाया। इन सम्राटों ने राज्य बढ़ाने का कुछ प्रयत्न नहीं किया। इनके अनन्तर नंदिवन और महानन्दि नामक दो सम्राटों का उल्लेख है। महानन्दि इस बंश का अन्तिम सम्राट था, जिसकी शूद्रा स्त्री के नन्द नामक पुत्र हुश्रा। इसने मगध राज्य पर अधिकार करके नन्द वंश स्थापित किया।

इस प्रकार वि० सं० पूर्व ५८५ से वि० सं० पू० ३१५ तक लगभग पौने तीन सौ वर्ष तक राज्य करने पर शिशुनाग वंश का अन्त हुआ और नन्द वंश का प्रथम सम्राट महाझ नन्द हुआ। यह शूदा से उत्पन्न तथा क्षत्रियों का कठोर शत्रु था। यह अहासी वर्ष राज्य कर मर गया। इसके अन्तर