पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१६

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बाहर वन तक इसके पुत्रों के हाथ में रह कर मगध राज्य मौर्यों के हाथ में चला गया।

ग्रीक लेखकों के अनुसार उस समय के नन्दवंशीय राजा के कुस्वभाव के कारण हिंदू मजा में असंतोष फैला हुआ था । दूसरा कारण उनका शूद्रजात होना था। नन्दबंश वाले क्षत्रियों के नाशक थे, इससे उस समय के क्षत्रिय राजे भी उनसे विमुव थे। जिस समय चाणक्य नन्दी से बिगड़ खड़ा हुआ,उसी समय के प्राससस सिकंदर भारत में पाया और चला गया। उस समय चन्द्रगुप्त पंजाब में चक्कर लगा रहा था। सिकंदर की मृत्यु पर पंजाब के राजाओं ने यवनों के शासन के विरुद्ध विद्रोह किया और चन्द्रगुप्त इन बलवाइयों का मुखिया बन बैठा। इसी समय चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को नन्दों के विरुद्ध उभाड़ा और पंजाब के राजाओं की सहायता से तथा प्रांतरिक षड्चक्र द्वारा मगध राज्य पर अधिकार कर चंद्रगुप्त को प्रथम मौय सम्राट बनाया।

चंद्रगुप्त ने अधिकार प्राप्ति के अनार कोशल तक अपना राज्य बढ़ाया। वि० सं० २४० पू० में ग्रीक गजा सिल्यूकस निकेटोर सिकंदर के विजय किए हुए प्रांतों पर अधिकार करने के बाद भारतवर्ष में आया; पर चंद्रगुप्त से परास्त होकर लौट गया। इस पराजय के उपलक्ष में सिल्यूकस को अपनी कन्या चंद्रगुप्त से ब्याहनी पड़ी और काबुल, कंधार, हिरात तथा बिलूचिस्तान के प्रदेश भी उसे सौंपने पड़े। चंद्रगुप्त ने भी अपने श्वशुर को पांच सौ हाथी प्रदान कर सम्मानित किया। इसके उपरांत सिल्य कस ने मेगास्थनीज को अपना राजदूत बनाकर चंद्रगुप्त के दरबार में रखा।

इस प्रकार चौबीस वर्ष निष्कंटक राज्य कर पचास वर्ष की अवस्था में सं० २४१ पू.के निकट चद्रगुप्त की मृत्यु हुई। इसके अनन्तर इसके पुत्र बिंदुसार इसके ने पचीस वर्षे राज्य किया और तब पम्म प्रसिद्ध अशोक भारत वर्ष का सम्राट हुआ।

६-ग्रन्थ-परिचय

मुद्राराक्षस का स्थान संस्कृत साहित्य में बहुत ऊँचा है और अन्य नाटकों से! भिक ऐतिहासिक तथा राजनीति-विषयक होने के कारण इसका कथावस्तु पुराण म भारत रामायण से नहीं लिया गया है और न कोरी कसोल-कल्पना ही