पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१५२

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. सिद्धार्थक-मित्र ! ऐसा कौन है जिसको इस जीव-कोक में रहना हो और वह आर्य चाणक्य की आज्ञा न माने ? चलो, हम लोग चांडाल का वेष बनाकर चंदनदास को वधस्थान में ले चलें। [दोने जाते हैं ____ इति प्रवेशक स्थान-बाहरी प्रांत में प्राचीन बारी [ फाँसी हाथ में लिए हुए एक पुरुष प्राता है। ] पुरुष · षट गुन सुदृढ़ गुथी, मुख फाँसी। जय-उपाय-परिपाटी गाँसी ॥ • रिपु-बंधन में पट प्रति पोरी!. .. . . जय चाणक्य नीति को डोरी ।। . ( इधर उधर घूमते हुए ) आर्य चाणक्य के चर उंदुर ने इसी स्थान में मुझको अमात्य राक्षस से मिलने कहा है ( देखकर ) यह अमात्य राक्षस सब अग छिपा.हुए भाते हैं। तब तक इस पुरानी बारी में छिपकर हम देखें कि यह कहाँ ठहरते हैं। (छिपकर बैठता है) [शस्त्र लिए हुक्क्ष स आता है ]. राक्षस-(आखों में आँसू भरको हक बड़े कष्ट की बात है ! ६० - दिनसे और पै जिमि कुलटा तिय जाय । - तजि तिमि नंदहि चंचला चंद्रहिं सपटी धाय । देखादेखी प्रबहु सब कोनो ता अनुगौन। तजिकै निज तुप-नेह सब कियो कुसुमपुर भौन ॥ होइ बिफल उद्योग में तजिकै कारजभार । .. माप्त मित्रह थक रहे सिर बिनु जिमि.महि छारं ॥ तजिकै निजरपति भुवनपति सु-कुल जात नृप नंद। .. श्री वृषली गई वृषल ढिग, सील त्यागि करि छंद ॥ . मु. ना०-६ ..