सप्तम अंक ८६ ... . सक्षम अक . स्थान-सूली देने का मसान [पहला चांडाल आता है। चांडाल-इटो लोगो हटो, दूर हो भाइयो, दूर हो । जो अपना प्राण, धन भोर कुल बचान हो तो दूर हो। राजा का विरोध यत्न- पूर्वक बोड़ो- करि कै पथ्य-विरोध इक रोगी त्यागत मान । पै विरोध नृप सों किए नसत खकुल नर, जान ॥ जो न मानो तो इस राजा के विरोधी को देखो जो स्त्री-पुत्र समेत यहाँ सूली देने को लाया जाता है। (ऊसर देखकर ) क्या कहा 'इस चदनदास के छूटने का कुछ उपाय भी है ?' 'मला इस बेचारे १० के छूटने का कौन उपाय है ? पर हाँ जो यह मंत्री राक्षस का कुलुप दे दे तो छूट जाय।' (फिर ऊपर देख कर ) क्या कहा कि 'यह शरणागतवत्सल प्राण देगा, पर यह बुरा कम न करेगा।तो फिर इसकी बुरी गति होगी, क्योंकि बचने का तो वही एक उपाय है।' [कंधे पर सूनी रक्खे मृत्यु का कपड़ा पहिने चंदनदास, उसकी स्त्री और पुत्र और दूसरा चांडाल भाते हैं।] स्त्री-हाय हाय ! जो हम लोग नित्य अपनी बात बिगड़ने के" डर से फूक-फूंक कर पैर रखते थे ही हम लोगों की चोरों की भांति मृत्यु होती है । काल देवता को नमस्कार है, जिसको मित्र उदासीन सभी एक से है, क्योंकि- छोडि माँस भख मरन भय जियहिं खाइ तृन घास । तिन गरीब मृग को काहि निरदय ब्याधा नास ॥ (चारों ओर देखकर ) अरे भाई जिष्णुदास ! मेरी बात का उत्तर क्यों नहीं देते ! हाय ! ऐसे समय में कौन ठहर सकता है ?
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