पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१६२

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मक स्त्री-(रोकर ) नोगो ! वचाओ, परे ! कोई बचामो! चंदन-माइयो, तनिक ठहरो (स्त्री से ) अरे ! अब तुम रोरों कर क्या नंदों को स्वर्ग से बुला लोगी अब वे लोग यहाँ नहीं है, जो त्रियों पर सर्वदा दया रखते थे। . . . चांडाल-अरे वेणुवेत्रक। पकड़ इस चंदनदास को, घरवाले आप ही रो पीटकर चले जायेंगे। स्थांवाल-अच्छा वज़लोमक मैं पकड़ता हूँ। ६० चैदन-माइयो ! तनिक ठहरो, मैं अपने लड़के से मिल लूँ। (बड़के को गले लगाकर और माथा सँघकर ) बेटा! मरना तो था ही, पर एक मित्र के हेतु मरते हैं, इससे सोच मत कर। ____पुत्र-पिता ! क्या हमारे कुल के लोग ऐसा ही करते आए हैं ? (पैर पर गिर पड़ता है)। २ चांडाल-पकड़ रे वचनोमक ! (दोनों चंदनदास को पकरते स्त्री-लोगो! बचाओ रे, बचाओ! [वेग से राक्षस आता है ] राक्षस-डगे मत डरो मत । सुनो सुनो घातको! चंदनदास ७० को मत मारना, क्योंकि- नसत स्वामिकुल जिन लख्यो निज चख शत्रु समान । मित्र दुःख हू मैं धर्यो निलज होइ जिन प्रान ॥ तुम सों हारि बिगारि सब कढ़ी न जाकी साँस । ता राक्षस के कंठ मैं डारहु यह जमफाँस ॥ . चंदन-( देखकर औ.. आँखों में आँसू भरकर ) अमात्य ! 'यह क्या करते हो? राक्षस -मित्र, तुम्हारे सच्चरित्र का एक छोटा सा अनुकरण । चंदन-अमात्य, मेरा किया तो सब निष्फल हो गया, पर आपने ऐसे समय यह साहस अनुचित किया। ८०