पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१९६

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. "स्वर्गस्थित स्वामी अपने शत्रुओं का नाश देखकर प्रसन्न होंगे। - मुख्यालंकार। १२.५५-गुणवान नंद को छोड़ कर क्षणिक सुख के लिए लक्ष्मी 'प्रकार शूद्र चंद्रगुप्त से मिल गई जिस प्रकार अमृत रूप से। बाले हाथी के माते ही जिस प्रकार मदद्धार भी साथ ही नष्ट हो है उसी प्रकार तू भी नंद के साथ क्यों न नष्ट हो गई । ऐ "ज्जे अब तक तू संसार में जीवित है! मल में अमृत-सर्प की उपमा और 'निलज अजहूँ जग बसै' ___ लक्ष्मी को मद्धार और अमृत के साहश्य उपमालंकार और के हेतु सूद्रानुरक्ति से परिकरालंकार है । 'उक्तैर्विशेषणैः सामिप्रायः करो मतः लक्षण है। "५७-५८-क्या संसार में अच्छे कुलवाला कोई राजा नहीं रह गया जो तू नीचगामिनी ( जो अपनी जाति से नीचतर जाति का संपर्क

) होकर शूद्र में अनुरक्त हुई ।

' मून के एक श्लोक के पूर्वार्द्ध का अनुवाद यह दोहा है और रार्द्ध का आगे का दोहा है । ६० ६१-स्त्रियाँ जो स्वभावतः चंचल होती है वे कुल श्रेष्ठ और से पुरुषों को छोड़कर बुरे मनुष्यों से प्रेम करती हैं। मूल में स्त्रियों को चपलता का यह विशेषण अधिक है-"कास फूलों की नोकों के समान चंचलता।" मूल में स्त्री के लिए पुरंध्री मन्द आया है, जिसका अर्थ है उतार अवस्था की वह स्त्री जिसे पौत्र आदि हो चुके हों और राजा तथा रानी के संदेशों को क दूसरे के पास ले जाय । अनुवाद में वारबधू अर्थात् वेश्या शब्द या है । शूद्रानुरक्त होने का कारण कुलीन राम का प्रभाव न . . ते वाक्य से दुश्चरित्रा स्त्रियों का चापल्य दिखलाया है । ६७-७१-राक्षस अपने उन उपायों का मनन कर रहा है जो उसने चंद्रगुप्त के नाश के लिये प्रयुक्त किए थे पर जीवसिद्धि को सुहृद