पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१९७

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मुद्राराक्षस नाटक कहलाकर नाटककार ने राक्षस के षड्यंत्र का खोखलापन दिखलाया है, क्योंकि वह वस्तुतः चाणक्य का चर है। ___७२.७५-संतानवत्सल महाराज नंद सिंह के बच्चे की नाई जिसको पालकर वंश के सहित नाश को प्राप्त हुए उसी के मर्मस्थान को हम बुद्धि-रूपी तीर से विदीर्ण करेंगे यदि अदृश्य दैव कवच बन कर उसकी रक्षा न करेगा। ___ नुवाद में विष-वृक्ष और अहिसुत दो उपमाएं बढ़ाई गई है। उपमा और रूपक दोनों हैं । राक्षस का "जो दुष्ट... "अाइहै" कहना भाशंका सूचित करता है। उसे अपने बुद्धि-रूपी तीरों पर हो विश्वास नहीं है । पूर्वीक में चाणक्य का कथन इसके विपरीत दृढ़ता और साहस से पूर्ण है। ____७६-कंचुकी-अंतःपुर का द्वाररक्षक । साहित्यदर्पण में इसका लक्षण यों लिखा है-'अन्तःपुरचरो द्वारो विप्रो गुणगाणान्वितः सर्वकार्यार्थ कुशलः कंचुकीत्यभिधीयते।' ७८-८१-जिस प्रकार चाणक्य की नीति ने नंद का नाश कर चंद्रगुप्त को कुसुमपुर में स्थापित किया उसी प्रकार वृद्धावस्था ने मेरी कामवासना का नाश कर मुझ में धर्म स्थापित किया है । यद्यपि अवसर पाकर राक्षस चंद्रगुप्त को विजय करने जायगा और उसी प्रकार लोभ भी यद्यपि (राजसेवा-रूपी अवसर पाकर) धर्म को दबाना चाहता है पर शिथिल होने के कारण दोनों जयो नहीं हो सकते। '. राक्षस का पराभव सूचित करता है। उपमालंकार है। ६५-९६-राक्षस श्राभरण न पहनने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं। ... १२६-बाई आँख फड़कना पुरुषों के लिए अशुभ-सूचक है। . सर्प-दर्शन भी अशुभसूचक है। १३३-१३४-भ्रमर सभी फूलों का रस लेकर जो एक वस्तु (मधु) बनाता है उससे संसार के अनेक कार्य होते हैं। कुसुम का अर्थ पुष्प है पर साथ ही वह कुसुमपुर भी व्यजित करता है जिस पर यह अर्थ घटता है कि 'कुसुमपुर के रहस्यों का पता लगाकर जो वृत्तांक मैं (भ्रमर ) बतलाऊँगा उससे भी बहुत काम