गा। अप्रस्तुतप्रशंसालंकार है क्योंकि अप्रस्तुत भ्रमर द्वारा अपनी पुणता दिखलाई गई है। १३६-१३८-नाटककार राक्षस का कार्य की भीड़ से घबड़ा जाना चित करता है। . १४५-१४८ -विवाहिता स्त्री का स्थान पति के वाम भाग में है पर नंद वंश को राज्यश्री पर चंद्रगुप्त का नीतियुक्ति अधिकार नहीं का प्रत्युत् उस पर बलात् अधिकार किया गया था इसलिये वह पत्नी...' क. उपयुक्त वाम स्थान को छोड़कर चंद्रगुप्त के दक्षिण ओर बैठी यो।नंदराज्य के उद्धारार्थ राक्षस के प्रयत्नों को देखकर लक्ष्मी यद्यपि चंद्रगुप्त के कंठ को बाई बाहु से वेष्ठित करती है. पर वह हाथ गिर गिर पड़ता है। आजिंगन करने की इच्छा से दाहिने हाथ को भी सके कंधे पर ( दोनों हाथों से संपूर्ण आलिंगन करने की इच्छा से रखती है पर वह भी गोद में गिर पड़ता है और उसकी बुद्धि गवस की नीति से सशकित हो रही है, इससे वह अभी तक "द्रगुप्त के वक्षस्थल पर अपनी छाती रख गाढ़ा आलिंगन नहीं करती। इस पद से चंद्रगुप्त की राज्यश्री की अस्थिरता दिखलाई गई है। समें सामासोक्ति अल कार है। १५०-१५१-मूल में "ननु विरूढश्मश्रुः" कैसी बड़ी दाढ़ी है यह अधिक है। इस कथन से सूचित होता है कि राक्षस नीतिज्ञ होने पर भी अनेक भूल किया करता था। पहले वह एकाएक चर का नाम पुकार उठा फिर उस बात को उड़ाने को चेष्टा में एक दूसरी भूल कर बैठा र्थात् प्रियंवदक से कहा कि माँ से जी बहलाता हूँ' यद्यपि इसके ले हो कह चुक थे कि 'साँव देखने को जी नहीं चाहता' और उसे इसलिए बुलाया था कि वह सुकवि है, मैं भी इसकी कविता सुनना IPS
१६५-शक जाति तिब्बत से उत्तर पर दरिया के तट पर बसने वाली एक जाति थी, जिसे चीनी से' या 'मे' कहते थे। यह जाति