पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२०

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के पास पहुँचा। कुसुमपुर से मलयकेतु के पड़ाव तक की दूरी तथा दुर्गम रास्ते के लिये चतुर्थ अंक के आंरभ में करभक का कथन ही पर्याप्त है।

तीसरे अक काश्य चातुर्मास के अनंतर आश्विन शुक्ल पूर्णिमा का है। इसका वर्णन उसी अक में है। चौथे अक का दृश्य मार्गशीप पूर्णिमा का है। ( देखिये पक्ति २८५-२८८ की टिप्पण) पाँच अंक का भी पूर्वोक्त तिथि के एक मास बाद का होना संभव है, क्योकि मजयकेतु की सेना करमक की कथित दूरी को ( अंक ४ पक्ति २.३) तर कुसुमपुर के पास पहुँच गई थी ! ( अंक ५ पंक्ति ३१) ___ अतिम दो अंकों की घटना का समय लेने पर नाटक की कथावस्तु का समय एक वर्ष के भीतर ही होता है। ८-पात्रों की विवेचना कवि विशाखदत्त ने अपने पात्रों का चरित-चित्रण भी अच्छा किया है। इस नाटक के प्रधान पात्र कुटिल राजनीतिधुरंधर चाणक्य उपनाम कौटिल्य है और इनके प्रतिद्वंद्वी नंदवंश के मंत्री राक्षस हैं। नाटक के नायक मौर्यवंश के प्रथम सम्राट चंद्रगुप्त तथा प्रतिनायक मलयकेतु हैं। अन्य पात्रों के चंदनदास, शकटदास और भागुरायण उल्लेखनीय हैं। चाणक्य और चंद्रगुप्त ऐतिहासिक पुरुष है। राक्षन भो ऐतिहासिक पुरुप होंगे क्योकि ऐसे प्रधान पात्र को कल्पित मानना उचित नहीं। यदि ये कोरे कवि कल्पना मात्र होते तो क्या कवि राक्षस : से अच्छे नाम की कल्पना नहीं कर सकता था। मलयकेतु भी ऐतिहासिक हो सकता है ! अन्य पात्र कल्पित है। इस नाटक में प्रथम पात्र-युगल के जीवन का केवल वही अंश दिखलाया गया है, जो राज्य के षड्यंत्रों में व्यतीत होता था। दोनों ही में स्वार्थ का चिन्ह भी नहीं देख पड़ता। चाणक्य ने इतने परिश्रम से, केवल अपनी प्रतिज्ञः को पूरी करने के लिये चंद्रगुप्त को राज्य का अधिकारी बनाया : और अंत में उत्त राज्य को दृढ़ कर मंत्रित्व का पद तक न ग्रहण किया . धन् स्वस्थापित गज्य की भलाई के लिये उसे अपने प्रतिद्वंद्वी राक्षस को सौंप दिया। राक्षस भी नि:स्वार्थ भाव से ही अपने गत स्वामिनश का बदला