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पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२०५

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--कौमुदी महोत्सव-कार्तिक की पूर्णिमा को पूर्ण चंद्रबिंब का पूजन और व्रत होता है । यह शरद पूर्णिमा भी कहलाती है 'कौमुदीःस्यात्कार्तिक के' के अनुमार कार्तिक मास का नाम भी कौमुर है। इसी अंक के पं० २१२ में देवोत्थान एकादशी का उल्लेख भी है जो कार्तिक में होती है। १०-ग्रहीं से विमर्शसंधि का प्रसंग प्रारंभ होता है। ११-दइमारो-यह दैवोरहताः का शुद्ध अनुवाद है । दैव । मारे गए। १२.१५-खभों में फूलों की माला लपेटो तथा सुगंध द्र० जलाओ जिससे प्रासाद के खंभे सुगंधित हो जाएँ और पूणेचद्र समान कांतिवाले चवर भी लटकायो। राजसिंहासन के बम दबकर गाय-रूपी पृथ्वी मूर्छित हो गई है, उसे चंदनमिश्रित गुल' जल से सींचकर जगायो । अर्थात् जिस प्रकार सिंह के वश हुई ग मूर्छित हो जाती है, उसी प्रकार सिंहासन के भारी बोझ से पृट मूर्छित है। गाय या स्थान को सुगंधित द्रव्य से सिंचन कर होश लामो या सुगंधित करो। ___ पूर्वार्ध में पूर्णंदु की किरणों के चामर के साथ साम्य से सर सोक्ति अलंकार हुश्रा। सिह के वश में हुई गाय से श्लेष और म की संभावना से उत्प्रेक्षालंकार है। १६-२२-बहुत दिनों का अनुभव प्राप्त कर महाराज नंद ने जिस गज्य-मार का वहन किया था, उसो को चंद्रगुप्त ने योवना- वस्था ही में अपने कर ले लिया है। पर दृढ़ मनस्वी और बलवान होने के कारण उस कंटकमय दुर्गम मार्ग से कुछ भी नहीं हटता और यदि ( यौवन तथा शिक्षा योग्य अवस्था के कारण गिरने लगता है, तो झट बिना घबड़ाए समल जाता है। भारी राज्यभार वइन में क्लेश आदि होना चाहिए पर नहीं होता इलिए सांतरेकालंकार हुमा । दृढ़ गात के कारण दुर्गम मार्ग रूपी राज्यभार वहन के लिए प्रस्तुत युवा चंद्रगुप्त का अप्रस्तुत नववृषभ के साथ साम्य है, इसलिए समासोक्ति अलंकार हुआ।