पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२१६

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परिशिष्ट ख १४७ ३९४-भागुरायण भादि को चाणक्य ने चंद्रगुप्त हो के कार्य से मलयकेतु के पास भेजा था पर उनसे भो असली बात को छिपाकर . उनके असंतोष का बनावटी कारण बतलाया है। ३१०-मून में 'राज्यस्य मूलं' अर्थात् 'राज्य की जड़ है। ३१७-अनुग्रह-पक्ष के कथन का अंत होने पर दूसरे दंड पक्ष का भारंभ हुआ। इसका आशय यह है कि यदि नद-पक्ष के उन लोगों को जिन्होंने चद्रगुप्त का साथ दिया था, दंड दिया जाता, तो उस पर के अन्य लोगों में असंतोष फैलता और नए राज्य में शांति स्थापन करने में अत्यधिक समय लगता। ३३६८-पर्वतक के मारने का अपयश चाणक्य राक्षस के मत्थे मढ़ चुके थे, इसलिए उसके पुत्र मलयकेतु को पकड़ना उनको अभीष्ट नहीं था। ३५६-मूल में 'एवं सति उभयथापि दोषः' अधिक था; इससे अनुवाद में भी उसका अर्थ बढ़ा दिया गया। '. ३६०-३-यदि राक्षस मारा गया होता, तो हम एक ऐसे गुण- • सम्पन्न मनुष्य को खो देते और यदि हमारी सेना का नाश होता वो भी कष्ट होता। इसलिए उसे छलबल करके हम जंगली हाथी के समान अपने वश में करेंगे। हाथी के पक्ष में बाँधने और राक्षस के पक्ष में अपनी ओर मिलाने से अभिप्राय है । उपमानकार है । उपेक्षा, भेद, दंड, माया,

साम और दाम आदि उपाय अर्थात् छलबल किए गए थे।

३६६-७४-यद्यपि आपने [चाणक्य ] नगर पर अधिकार ___कर लिया था पर राक्षस की जितने दिन तक इच्छा रही उतने दिन • तक कुशल से वे मानों सिर पर लात रखकर यहाँ रहे। जयघोषणा .. की डौंडी फेरते समय उन्होंने बलपूर्वक हमारे मनुष्यों को परास्त कर दिया और नागरिकों को इस प्रकार बिना डर के प्रयोग के मोह लिया कि अपने लोग भी हम पर विश्वास नहीं रखते। ____ मूल में अंतिम पंक्ति का अर्थ इस प्रकार है कि 'निज पक्ष के . अत्यंत विश्वासभाजन मनुष्यों पर भी हमें विश्वास नहीं