पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२४३

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परिशिष्ट व १८१ था और शिवि ने तो शरणागत कपोत की गोद में पड़े रहने पर रक्षा की थी। इससे यह ध्वनि निकलती है कि तुम्हारा यश शिवि से श्वाध्यतर है। अनुवाद में इसे और बढ़ा दिया है। शिवि ने सत्ययुग में वह कार्य किया था जब दान, धर्म आदि मनुष्यों का सहज स्वभाव ही था पर चंदनदास ने कलियुग में उससे बढ़ कर कार्य किया जब धर्म की तीन टाँगें टूट गई थीं। इससे वह अधिक प्रशंसनीय है। उपमा तथा शिवि से अधिक प्रशंसनीय होने से व्यतिरेकालकार शिवि-राजा शिवि जब बानबे यज्ञ कर चुके तब 'ऊँच निवास 'नीच करतूती' वाले इंद्र ने विघ्न डालने के लिए अग्नि को कबूतर बनाया और स्वयं बाज बना। दोनों इसी रूप में शिकार शिकारी बने हुए यज्ञशाला में पहुंचे और कबूतर राजा की गोद में गिर पढ़ा राजा ने उसे छिपा लिया और बाज के कथन पर कि मैं भूखा मर जाऊँगा अपने शरीर से कबूतर की तौल बराबर माँस देने का वचन दिया । तुला पर तौलते समय शरीर का कुल माँस चढ़ा देने पर जब कपोत का तौल न हुआ तब उन्होंने अपना सिर काटना चाहा पर भगवान ने प्रकट हो कर इन्हें स्वर्गलोक भेत्र दिया।. २५०-निष्कृष% वीक्ष्ण, तेज । कृपाण = तलवार, कटार । मूल में 'व्यवसाय महासुहृदा निखिशेन' है अर्थात् प्रयत्नों श •मित्र तलवार है। नित्रिंश उस शस्त्र को कहते हैं जो नाप में तीस - अंगुल से अधिक हो। इससे छोटे शस्त्र कटार, छूरा आदि . कहलाते है। २५१-४५-मूल श्लोक का अर्थ- यह तलवार जो बादलों से हीन भाकाश के समान नीली है और जिसकी शक्ति शत्रुनों ने समररूपी कसौटी पर जाँच ली है युद्धार्थ आनंदित होकर हाथ से मित्रता कर रहा है तथा मित्रस्नेह से विवश ॐ कर हमें साहस के काम में नियुक्त कर रहा है।