पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२४५

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- अनिश्चयात्मक बुद्धि के हेतु होने के कारण काम्यजिंग अलंकार हुआ। रू२८५-(घातकों के मारे जाने के कारण ( इस समय शख के प्रयोग से मित्र के मारे जाने की आशंका है। इस समय जो ति सोचे ( जिसका फल समय व्यतीत होने पर प्रकट होता है) गोव्यर्थ समय नष्ट होगा । जब ( मेरे कर्म से प्रिय मित्र ) चन्दन- हास मेरे लिए (घोर ) कष्ट में पड़ा हुआ है तब चुपचाप बैठ रहना : चित नहीं है। (अब मैं समझ गया कि) मित्र के रक्षार्थ हम । अपना शरीर बेचेंगे। कोष्ठकों के भीतर का अंश मूल में अधिक है। शरीर बेचना अर्थात् दास्य स्वीकार करना, मंत्रित्व का अधिकार ाथ में लेना। प्रथम तीन पंक्तियों में काव्यलिंग और अतिम में परिवृत्ति लिंकार है। सप्तम अंक छठे अंक में राक्षस का पकड़ा जाना रूपी मुख्य कार्य की फला- (प्ति का निश्वित होना नियताप्ति है। अब इस अंक में राज्यस्थैर्य पी नाटक के उत्कृष्ट फल की प्राप्ति पर्थात् फलागम वर्णित है। सी हाथ में लिए हुए पुरुष से सूचना पाकर राक्षस शस्त्र त्याग र चंदनदास को छोड़ाने के लिए बधस्थान की ओर गया। इसी (चंदन दास का वृत्तांत इस अंक में अभिनीत करने से दोनों अंकों बीच संबंध टूटने नहीं पाया। ३-५-'जो अपना....."छोड़ो' अंश मूल में प्रार्या छंद में है उसकी धारा ठीक नहीं है इससे स्थात् अनुवाद भी गद्य ही में । गया । मूल में राजा का विरोध यत्नपूर्वक छोड़ो' के पहले इतना धि है विष के समान ।