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पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२५४

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१६२ मुद्राराक्षस ना विष्णु (अं३ पं० २०३-२१७ ) का गुणानुवाद रूप मंगलपास हुश्रा और अंत में विष्णु के वाराहावतार का गुण-कीर्तन रूप मंग विधान हुआ। इस प्रकार के मंगलपाठों से उपास्योपासक अद-ज्ञान की दशा में भी 'अभेदः शिवरामयोः' स्पष्टदया। व्यक्त है। इस श्लोक में रूपकालंकार है। परिशिष्ट (ग) इस नाटक के विषय में विलसन साहिब लिखते हैं कि यह नाटक और नाटकों से प्रति विचित्र है क्योंकि इसमें सम्पूर्ण रा नीति के व्यवहारों का वर्णन है। चंद्रगुप्त (जो य नानी लोगों का सैन्द्रोकोत्तस Sandrosotius है) और पाटलिपुत्र (जो यूरप का पालीबोतरा Polibothra है ) के वर्णन का ऐतिहासिक नाटक होने के कारण यह विशेष दृष्टि देने के योग्य है। इस नाटक का कवि विशाखदत्त महाराज पृथु का पुत्र और सामन्त बटेश्वरदत्त का पौत्र था। इस लिखने से अनुमान होता है कि दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा पृथ्वीराज चौहान ही का पुत्र विशा, दत्त है क्योंकि अंतिम श्लोक से विदेशी शत्रु की जय की ध्वनि पाई जाती है भेद इतना ही है कि रायसे में पृथ्वीराज के पिता का नाम सोमेश्वर और दादा का आनंद लिखा है । मैं यह अनुमान काना हूँ कि सामत बटेश्वर इतने बड़े नाम को कोई शीघ्रता में या ध्रु करके कहै तो सोमेश्वर हो सकता है और संभव है चंद ने भाषा से सामंत बटेश्वर को ही सोमेश्वर लिखा हो। मेजर विल्फर्ड ने मुद्राराक्षस के कवि का नाम गोदावरी तीर निवासी अनंत लिखा है, किंतु यह केवल भ्रममात्र है। जितनी प्राचीन पुस्तकें उत्तर वा दक्षिण में मिनी किसी में अनंत का नाम नहीं मिला है। इस नाटक पर बटेश्वर मैथिल 'डित की एक टीका भी है।