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पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/४०

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नाटक के कुछ पात्रों का उल्लेख है और तीसरे में नाटक का आधार वृहत्कथा को बतलाया गया है। सरस्वती कंठाभरण में मद्रागक्षस के नाम का उल्लेख नहीं है, पर एक विशेष अंश दोनों में समान रूप से है, जिसे मुद्राराक्षस से उद्धत मानना चाहिए । दूसरा मुद्राराक्षस के एक प्राकृत श्लोक का संस्कृत अनुवाद है, जिनकी दूसरी पंक्तियों में कुछ भिन्नता है। दशरूपक के लेखक धनंजय परमार वंशीय गजा मुंज के समय में हुए, जो राजा भोज के पितव्य थे। सरस्वती कंठाभरण इन्हीं राजा भोज की कृति है। मुंज की मृत्यु सं १०५० ओर १०५४ के बीच में हुई और राजा भोज के सिंहासनारूढ़ होने के समय सं १०६० या उसके पूर्व है। पूर्वोक्त विचारों से यह निश्चित हो गया कि मुद्राराक्षस नाटक सं १०४४ वि. के पूर्व की कृत है। ६-मि तैलंग के बतलाये पूर्वोक्त दोनों ग्रंथों के सिवा शार्गेधर पद्धति में मुद्राराक्षस (अंक ७ श्लोक ३) के एक श्लोक के भावार्थ की नकल मुक्तापीड कृत कह कर उद्धत है । यह मुक्तापीड या ललितादित्य काश्मीर के राजा थे और इनका काल सन् ७२६-७५३ ई० है। विशाखदत्त कृत दो अनुष्टुभ श्लोक वालमदेव के सुभाषित में संगृहीत हैं, जिनका काल

  • उपरि घणं घणरडिअं दूरेदहदा किमेददावदिश्राम् ।

हिमवदि दिव्वो संहिश्रो सीसे सप्पो समाविट्टो ॥ +दशरूप का रचयिता धनजय तथा उसकी दशरूपावलोक टीका का रच यता धनिक दोनों भाई थे। ये तीनों उद्धरण अवलोक ही में हैं। पहिला प्रथम प्रकाश के अतिम श्लोक की टीका में, दूसरा द्वितीय प्रकाश के ५१ वे श्लाक के पूर्वार्ध 'सांधात्या के उदाहरण में और तीसरा तीसरे प्रकाश के १९ वें श्लोक के नालिका के उदाहरण में दिया गया है। ++ देखिये नागरी प्रचारणी पत्रिका, नया सन्दर्भ भाग १ पृ० १२३-४ + प्रारभ्यते नखुल..........'श्लोक कुछ भेदों के साथ भत हरि शतक