पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/७९

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मुद्राराक्षस नाटक
 

दूत— (हंसकर) तीसरा तो राक्षस मंत्री का मानो हृदय ही पुष्प- पुरवासी चंदनदास नामक व बड़ा जैाहरी है, जिसके घर मे मत्री राक्षस अपना कुटुंव छोड़ गया है। चाणक्य- आप ही आप ) अरे यह उसका बड़ा अंतरंग मित्र होगा क्योंकि पूरे विश्वास विना राक्षस अग्ना कुटुंब यो न छोड़ १७० बाता। (प्रकाश) भला तूने यह कैसे जाना कि राक्षस मत्रो वहाँ अपना कटुव छोड़ गया। दूत-महाराज! इस 'मोहर" की अंगूठो से आपको विश्वास होगा।(अंगूठी देता है)। चाणक्य-(अंगूठो लेकर और उसमें राक्षस का नाम बाँचकर, प्रसन्न होकर, आप ही आप ) अहा ! मैं समझता हूँ कि गस हो मेरे हाथ लगा। (प्रकाश) मला तुमने यह अंगूठी कैसे पाई ! मुझसे सब वृत्तात तो कहो। . दूत-सुनिये । जब मुझे आपने नगर के लोगों का भेद लेने भेजा तब मैंने यह सोचा कि बिना भेस बदले मैं दूसरे के घर में न १८०. घुमने पाऊँगा, इससे मैं जोगी का भेख करके जहाज का चित्र हाथ में लिये फिरता फिरता चंदनदास जौहरी के घर में चला गया और वहाँ चित्र फैलाकर गीत गाने लगा। चाणक्य-हाँ, तब ' दुत-तव, महाराज ! कौतुक देखने को एक पाँच बरस का बड़ा सुदंर बालक एक परदे की पाद से बाहर निकला। उस समय परदे के भीतर स्त्रियों में बड़ा कलकल हुआ कि 'लड़का कहाँ गया ?" इतने में एक स्त्री ने द्वार के बाहर मुख निकालकर देखा और लड़के को भट पकड़ ले गई; पर पुरुष की उंगली से स्त्री की उंगली पतली होती है इससे द्वार ही पर यह अंगूठी गिर पड़ी और मैं उस पर १६० राक्षस मंत्री का नाम देखकर आपके पास उठा लाया। चाणक्य-वाह वाह! क्यों न हो अच्छा जाओ मैंने सब सुन लिया। तुम्हें इसका फल शीघ्र ही मिलेगा। दूत-जो आज्ञा (जाता है)।