पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुद्राराक्षस नाट प्रथम चित्रवर्मा कुलूत को राजा भारी। मलय-देशपति सिंहनाद दूजो बलधारी॥ तीजो पुसकरनयन अहै कस्मीर देश को। सिंधुसेन पुनि सिंधु-नृपति अति उग्र भेष को॥ ____., मेंघाक्ष पाँचों प्रबल अति; बहु हय जुत पारस नृपति। . अब चित्रगुप्त इन नाम को मेटहिं हम जब लिखहि इति ॥ ( कुछ सोचकर ) अथवा न लिख अभी सब बात योंही रहे ।२३६ (प्रकाश) शारंगरव! शारंगरव! शिष्य-(आकर ) भाज्ञा, गुरुजी। चाणक्य-बेटा। वैदिक लोग कितना ही अच्छा लिखें तो भी उनके अक्षर अच्छे नहीं होते इससे सिद्धार्थक से कहो ( कान में कहा कर ) कि वह शकटदास के पास जाकर यह सब बात यों लिखवाकर और "किसो का लिखा कुछ कोई आप ही बाँचे" यह सरनामें पर नाम बिना लिखवाकर हमारे पास आवे और शकटदास से यह न कहे कि चाणक्य ने लिखवाया है। शिष्य-जो आज्ञा (जाता है)। चाणक्य-(आप ही आप ) अहा ! मजयकेतु को जो जीत २४० लिया। . [चिट्ठी लेकर सिद्धार्थ क आता है] ___ सिo-जय हो महाराज की, जय हो महाराज ! यह शकटदास के हाथ का लेख है। चाणक्य-( लेकर देखता है ) वाह ! कै सुन्दर अक्षर हैं (पढ़कर बेटा यह मोहर कर दो। सिo-जो आज्ञा ( मोहर करके) महाराज, इस पर मोहर हो गई, अब और कहिये क्या आज्ञा है ।। चाणक्य-बेटा ! हम तुम्हें एक अपने निज के काम में भेजा चाहते है। . २५० सिo-(हर्ष से ) महाराज, तो आपकी कृपा है कहिये, यह दास आपके कौन काम भा सकता है ? . .