११४ मुद्रा-राक्षस वा जो लोग चन्द्रगुप्त से उदास हो गये हैं वही लोग इधर मिले हैं, मैं व्यर्थ सोच करता हूँ (प्रगट ) प्रियम्बदक ! कुमार के अनुयायी राजा लोगों से हमारी ओर से कह दो कि अब कुसुम- पुर दिन दिन पास आता जाता है, इससे सब लोग अपनी सेना अलग अलग करके जो जहाँ नियुक्त हो वहाँ सावधानी से रहें। आगे खस अरु मगध चले जय ध्वजहिं उड़ाए। यवन और गंधार रहें मधि सैन जमाए। चेदि हुन सक राज लोग पीछे सों धावहिं। कौलूतादिक नृपति कुमारहि घेरे श्रावहि * !! है, वह हारता है। (यह राक्षस ने इसी विचार पर कहा कि चन्द्रगुप्त के लोग इधर बहुत मिले हैं इससे हारने का सन्देह है।) दर्शनों का थोड़ा सा वर्णन पाठकगण की जानकारी के हेतु पीछे किया जायगा।
- खस हिमालय के उत्तर की एक जाति । कोई विद्वान् तिब्बत
कोई लद्दाख को खस देश मानते हैं। यवन शब्द से मुख्य तात्पर्य यूनान प्रान्त के देशों से है, ( Bactri, Lovla., Greek) परन्तु पश्चिम की विदेशी और अन्यधर्मी जाति मात्र को मुहावरे में यवन कहते हैं । गान्धार जिसका अपभ्रश कन्दहार है। चेदि देश बुन्देल- खंड । ( कोई कोई चन्दोरी के छोटे शहर को चेदि देश की राजधानी. कहते हैं । हून देश योरोप के तत्काल के किसी असभ्य देश का नाम (Huns, Hungary) कोई विद्वान मध्य एशिया में हून देश मानते हैं । शक को कोई विद्वान् तातार देश कहते हैं और कोई (Scythians) को शक कहते हैं। कोई बलूचिस्तान के पास के देशो को शक देश मानते हैं । कौलूत देश के राजा चित्रवर्मादिक राक्षस के बडे विश्वस्त थे इसी से कुमार की अंगरक्षा इनको दी थी। इन राजाओं के नाम और देश का कुछ और पता मिलने को हम सिकन्दर के विजय की बड़ी बड़ी पुस्तकों को देखें । क्योंकि बहुत सी