पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१६५

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मुद्राराक्षस राक्षस मन्त्री हुए तब अब हाथी, घोड़ों का क्या सोच है ? इससे छोड़ो सब गज तुरंग अब, कछु मत राखौ बाँधि । केवल हम बाँधत सिखा, निज परतिज्ञा साधि ।। (शिखा बाँधता है) प्रतिहारी-जो आज्ञा (जाता है)। चाणक्य-अमात्य राक्षस ! मैं इससे बढ़ कर और कुछ भी श्राप का प्रिय कर सकता हूँ ? - राक्षस-इससे बढ़ कर और हमारा क्या प्रिय होगा ? पर जो इतने पर भी सन्तोष न हो तो यह अशीर्वाद सत्य हो- वाराहीमाल्मयोनेस्तनुमतनुबलामास्थितस्यानु रूपा यस्य प्राग्दन्तकोटिम्प्रलयपरिगता शिश्रिये भूत धात्री ।। म्लेच्छरुद्वेज्यमाना भुजयुगमधुना पीवरं राजमूर्तेः स श्रीमद्वन्धुभृत्यश्विरभवतु महापार्थिवश्चन्द्रगुप्त ! ( सब जाते हैं) सप्तम अंक समप्त हुआ। 5 ॥ इति ।। t