पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/४३

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२६ मुद्रा-राक्षस ! चाणक्य-बेटा ! केवल कार्य में तत्परता मुझे व्याकुल करती है. न कि और उपाध्यायों के तुल्य शिष्यजन से दुशीलता (वैठकर आप ही आप ) क्या सब लोग यह बात जान गये कि मेरे निन्दवंश के नाश से क्रुद्ध होकर राक्षस, पिता- वध से दुखी मलयकेतु ! से मिल कर यवनराज की- सहायता लेकर चन्द्रगुप्त पर चढ़ाई किया चाहता है। ( कुछ सोचकर ) क्या हुआ जब मैं नन्दुवंश की बड़ी प्रतिज्ञा रूपी नदी से पार उतर चुका तब यह यात प्रकाश होने हो से क्या मैं इसको न पूरा कर सकूँगा ? क्योंकि दिसि सरिस रिपु-रमनी-अदन-शशि शोक कारिख लायकै। लै नीति-पवनहि सचिव-विटपन 'छार डारि जराय कै-1, बिनु पुर-निवासी-पच्छिगन-नृप-बंसमूल नसाय है। भइ शांति मम क्रोधग्नि यह कुछ दहन हित नहिं पायकै |२|| और भी जिन जनन नैं अति सोचसों नृप-भय प्रगट धिक्र नहि कह्यौ। पर मम अनादर को अहिति वह सोच जिय जिनके रह्यौ । ते लखहिं आसन सों गिरायो नन्द सहित समाज को। जिमि शिखर तें वनराज क्रोधि गिराबई गजराज को ||१||

  • अर्थात् कुछ तुम लोगों पर दुष्टता से नहीं अनेक काम की

घबड़ाहट से बिछी हुई चटाई नहीं देखो। । नंदवंश अर्थात् नव नंद, एक नंद और उसके पाठ पुत्र । पर्वतेश्वर राजा का पुत्र । + अग्नि बिना आधार नहीं जलती। xनंद ने कुरूप होने के कारण चाणक्य को अपने श्राद्ध से निकाल दिया था। 67 - "