पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/५०

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2 प्रथम अङ्क घर में न घुसने पाऊँगा, इस से मैं जोगी का भेस कर के जमराज का चित्र हाथ में लिये फिरता फिरता चन्दनदास जौहरी के घर में चला गया और वहाँ चित्र फैला कर गीत गाने लगा। चाखक्य-हाँ, तयं? दूत-तब महाराज ! कौतुक देखने को एक पाँच बरस का बड़ा सुन्दर बालक एक परदे के आड़ से बाहर निकला उस समय परदे के भीतर स्त्रियों में बड़ा कलकल हुआ कि "लड़का कहाँ गया" इतने में एक स्त्री ने द्वार के वाहर मुंख निकाल कर देखा और लड़के को झट पकड़ ले गई, पर पुरुष की उँगली से स्त्री की उंगली पतली होती है, इससे द्वार ही पर यह अँगूठी गिर पड़ी और मैं उस पर राक्षस मन्त्री का नाम देख कर आप के पास उठा लाया। चाणक्य-वाह वाह ! क्यों न हो, अच्छा जाओ, मैंने सब सुन'. लिया ! तुम्हें इसका फल शोघ्र ही मिलेगा। दूत--जो आज्ञा ( जाता है)। 'चाणक्य - शारंगरव! शारंगरव! शिष्य -(आकर ) आज्ञा, गुरूजी ? चाणक्य--बेटा! कलम दावात कागज तो लायो। शिष्य-जो आज्ञा , ( बाहर जाकर ले आता है ) गुरू जी! ले पाया। चाणक्य-लेकर आप हो आप) क्या लिखू, इसी पत्र से राक्षस को जीतना है। 3 --