पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/७२

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द्वितीय अड़्क

मोतियों का उसको कवच पहिनाया और अनेक रत्नों से जड़ा सुन्दर मुकुट उसके सिर पर रक्खा और गले में अनेक सुगन्ध के फूलों की माला पहिराई, जिससे वह एक ऐसे बड़े राजा की भाँति हो गया कि जिन लोगों ने उसे सर्वदा देखा हैं वे भी न पहिचान सकें। फिर उस दुष्ट चाणक्य की आज्ञा से लोगों ने चन्द्रगुप्त की चन्द्रलेखा नाम की हथिनी पर बिठा कर बहुत से मनुष्य साथ कर के बड़ी शीघ्रता से नन्द मन्दिर में उसका प्रवेश कराया। जब वैरोधक मन्दिर मे घुसने लगा तब आपका भेजा दारुवर्म बढ़ई उसको चन्द्रगुप्त समझ कर उसके ऊपर गिराने को अपनी कल की बनी तोरन लेकर सावधान हो बैठा। इसके पीछे चन्द्रगुप्त के अनुयायी राजा सब थाहर खड़े रह गए और जिस बर्बर को आपने चन्द्रगुप्त के मारने के हेतु भेजा था वह अपनी सोने की छड़ी की गुप्ती जिस में एक छोटी कृपाण थी लेकर वहाँ खड़ा हो गया।

राक्षस---दोनों ने बे ठिकाने काम किया, हाँ फिर?

विराधगुप्त---तब उस हथिनी को मार कर बढ़ाया और उसके दोड़ चलने से कल की तोरण का लक्ष, जो चन्द्रगुप्त के धीखे वैरोधक पर किया गया था, चूक गया और वहां बर्बर जो चन्द्रगुप्त का आसरा देखता था, वह विचारा उसी कल की तोरन से मारा गया। जब दारुवर्म ने देखा कि लक्ष को चूक गये, अब मारे जायहींगे तो उसने उस कन के लोहे की कील से उस ऊँचे तोरन के स्थान ही पर से चन्द्रगुप्त के धोखे तपस्वी वैरोधक को हथिनी ही पर मार डाला!