पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/२९

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मेघदूत।

अपने प्रेमपात्र के सम्मुख हाव-भाव प्रकट करना ही स्त्रियों का पहला प्रणय-सम्भाषण है। अतएव तुझे लुभाने के लिए किय गये इन विलास-विभ्रमों का आनन्द लूटकर निर्विन्ध्या के रस-ग्रहण मे कुछ भी संकोच न करना।

निर्विन्ध्या के आगे तुझे सिन्ध नाम की नदी मिलेगी। तुझे ही वह अपने सौभाग्य का कारण समझती है। अतएव, तेरे वियोग मे वह वियोगिनी बन रही होगी। तू स्वंयही देखेगा कि विरहिणी वधू की वेणी के सदृश उसकी धारा पतली हो गई है और तटवर्ता तरुओं से गिरे हुए पुराने पत्तों से उसका रङ्ग पीला पड़ गया है। उनकी इस तरह की दयनीय दशा देख कर तू ऐसा उपाय करना जिसमें उसकी कृशता दूर हो जाय। तुझसे जलरूपी रस का दान पाने से उसका दुबलापन चला जायगा, यह तू समझही गया होगा।

आगे चल कर तू अवन्ती में पहुँच जायगा। वहाँ उदयन नाम का एक बड़ा प्रतापी राजा हो गया है। उसके बल, प्रताप और प्रभुत्व आदि की कथाये अवन्ती ही के नहीं, दूर दूर तक के गांवों के भी वृद्ध जन अब तक कहा करते हैं। उस प्रसिद्ध अवन्ती नगरी से होकर परम सम्पतिशालिनी उज्जयिनी में पहुँच जाना। उसे देख कर तू कृतकृत्य हो जायगा। उसको शोभा का वर्णन नहीं हो सकता। उसकी सुन्दरता और सम्पदा देख कर तेरे मन मे यह भावना उत्पन्न हुए बिना न रहेगी कि वह स्वर्गही का तो एक टुकड़ा नहीं। मैं तो उसे एऐसा ही समझता हूँ। मुझे तो ऐसा मालूम होता है जैसे अपने पुण्य-प्रभाव से बहुत समय तक स्वर्ग का सुखोपभोग करने के अनन्तर बचे हुए पुण्य के प्रताप से पुण्यात्मा