संयोग के समय चन्द्रमा की पीयूष-सहश शीतल किरणों से
मेरी प्रापेश्वरी ने बहुत सुख पाया है । इस कारण जब वे खिड़की
को राह में घर में प्रवेश करतो होगी तव पहली प्रीति की प्रेरणा से
उसको पाखें उस तरफ दौड़ जाती होगी। परन्तु वियोग-व्यथा की
याद आते ही वे तत्काल ही वहाँ से लौट पड़ती होंगी: क्योंकि अब
तो वे विपवन दुःखदायिनी हो रही होगी । उस समय आँसुओं से
पूर्ण पलकों से कभी तो वह ओखें ढक लेती होगी और कभी फिर
खाल देती होगी। अतएव वह कुछ कुछ सोती और कुछ कुछ
जागती सी ऐसी मालूम होती होगी जैसी कि दिन में, आकाश
मंधाच्छादित हे ने पर, घल की कमलिनी मालूम होती है-वह
कमलिनी जिस देखने से यही नहीं ज्ञात होता कि वह सा रही
है कि जाग रही है।
मित्र मेघ ! अपनी गृहिणी को दीन दशा का अनुमान करके मेरा कलेजा फटता है। उसके कमल-कामल शरीर पर एक भी गहना न होगा; सब उसने उतार फेंके होंगे : भू-शय्या पर वह बिलखती हुई पड़ी होगी और अपनं अत्यन्त कृश शरीर को अड़ी ही कठिनता से धारण कर रही होगी। उसके दुःस्व की सीमा न होगी । मैं सच कहता हूँ. उसकी दैन्यावस्था देख कर तू भी अवश्यही रा देगा-जल कणां के रूप में आँसू गिराये बिनातू भी कदापि न रह सकेगा। क्योंकि, जिनको आत्मा आई है-जो सरस- हृदय हैं-वे बहुधा करुणामय होते हैं: उनसे दूसरे का दुःख नहीं देखा जाता । मैं जानता हूँ कि मेरी पत्नी का मुझ पर प्रगाढ़ प्रेम है।
मरा रद विश्वास है कि इस पहलेही वियाग में उसकी वही