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पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/५५

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मेघदूत ।


दशा हुई होगा जिसका कि मैंन तुझस वर्शन किया। दू मुझे व्यश्च वानूनी न मान बैठना अपने मन में कही न यह न समझना कि मैं, अपना झूठा सौभाग्य प्रकट करने के लिए न्यों ही अपना वड़ाई बघार रहा हूँ ! भाई मेरे : इस विषय में जो कुछ भने नुमे कहा वह मब नू बहुत शीत्र स्वयं ही अपनी प्राश में दन्य लंगा तब तुझे मालूम हो जायगा कि मैंने कोई बात बढ़ा कर नही कहो-मैंने ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं की ।

उसकी कजलहीन आंखे अब अच्छी न लगती होगी। उन पर रूखी अलकां के वार वार गिरने सं उनकी दट्टी चितवन जाती रही होगी-उनका तिरछा देम्वना छूट गया होगा । मायान छाई दन में उन भाग्यां की भौहें भी विलाम-नाना दिवाना भूल गई होगी- उनका भङ्ग-भाव, उनका चमत्कार. जाना रहा होगा , मैं अनुमान करता हूँ कि जब तू मेरी प्रिया के पास पहुँचंगा नब शकुन-सूचना के लिए उस मृगनयनी की बाई आंख अवश्य फड़क उठेगी : उम ममय उसकी उस आख की शोभा, मछली के द्वारा हिलाई गई कमलिनी की शाभा की नमता को पहुँच जायगी।

तेरे पहुँचने पर मंग प्रियतमा का एक और मो शकुन होगा ! कनक-कदली के समान उसकी गोरी गोरी और गल बाई जा भी फड़क उठेगी - वह जांघ जिस पर से मेरे नग्वां के चिह्न मिट गये हैं, जिस पर तागड़ी की लड़ का लटकना बन्द हो गया है और जिसे मेरे कर-स्पर्श का सुख भी अप्राप्य हो गया है।

उस समय यदि उसकी आख लग गई हो और वह निद्रा क यत्किञ्चित् मुख भाग रहा हो तो बहुत नही पहर भर, जरूर