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पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/५७

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मेधदूत


तेरा कथन सुनेगी। बात यह है कि पति के मिलाप रे पन्नों को

जो आनन्द प्राप्त होता है उमस कृछही कम आनन्द मित्र के द्वारा उसका सन्देश पाने में ग्राम होता है । जब बड उन्मुख द्वाकर ध्यान से तेरा कथन सुनने के लिए नयार हो जाय उन मेरा सन्देश सुना कर उस पर उपकार करता : परन्तु मरे सन्देश का कोई अंशु छूटने न पाये । उसे अपनी तरफ़ में बढ़ा कर कहना, घटा कर नहीं : देव, न यह कहना-

"हे देवी : तेरा पति गमगिरि नामक पर्वत पर रहता है। वह कुशलपूर्वक है और तुझ वियोगनि का कुशान्त-समाचार पूछता है। जितनं शरीरधारी प्राशी हैं, काल मवर्क सिर पर चौबीस घण्टं नाच रहा है : पल भर भी किसी की वैर नहीं। नतो मालूम किम समय वह किम धर दबाव । अतएव. मबम पहन्ते अपने प्रेमी का कुशन्न-वृत्ती पृछना चाहिए । वैरी विधाता ने शाप के कारण, तेरे पनि के आने का मार्ग गक दिया है।वह वेबस दृर परदश में पड़ा है। न कही यह न समझना कि वह मुन्ध से है। नहीं. उनको दशा तुझसे भी अधिक दयनीय है ! मानसिक मङ्कल्पों से ही नहीं, शरीर में भी वह अन्यन्त दीन है। नु दुबली है वह तुझसे भी अधिक दुबला है। तु वियोगाग्नि में नप रही है: वह तुझसे भी अधिक तप रहा है। तु दु:वाश्रु बहाती है. उसकी आँखों में दुःखाओं की सतत धारा बहती है। दू उनसे मिलन के लिए उत्कण्ठित है: उसकी उत्कण्ठा तुझसे भी अधिक है। तू लम्बी उमासें लेती है: उसकी उमार्स तुझमे भी अधिक लम्बी हैं। सारांश यह कि उसकी वियोग विषयक व्याकुलवा वरी