यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११२
मेरी आत्मकहानी
(२)यज्ञोपवीत-
पंद्रह सै एकसठ माघ सुदी।
तिथि पंचमी औ भृगुवार उदी।
सरयू तट विप्रन यज्ञ किए।
द्विज बालक कहँ उपवीत दिए।।
(३)विवाह-
पंद्रह सै पार तिरासि विषै।
शुभ जेठ सुदी गुरु तेरस पै।
अधराति लगै जु फिरि भँवरी।
दुलहा दुलही की पड़ी पँवरी॥
(४)स्त्री-वियोग-
सत पंद्रह युक्त नवासि सरै।
सु अषाढ़ बदी दसमीहुँ परै।
बुधवासर धन्य सो धन्य घरी।
उपदेसि सती तनु त्याग करी॥
(५)राम-दर्शन-
सुखद अमावस मौनिया,बुध सोरह सै सात।
(६)सूरदास से भेंट-
सोरह सै सौरह लगे,कामद गिरि ढिग वास।
शुभ एकांत प्रदेश महँ,आये सूर सुदास।।