रहे। गुरु की मृत्यु हो जाने पर उनकी इच्छा अपनी जन्मभूमि को देखने की हुई । वहाँ जाने पर उन्हें विदित हुआ कि उनका वंश नष्ट हो गया है। लोगों ने उनके रहने के लिये घर बनवा दिया और वे वहाँ रहकर राम-कथा कहने लगे। एक ब्राह्मण ने बड़े आग्रह से अपनी कन्या का विवाह उनसे कर दिया। इस स्त्री से उनका इतना अधिक प्रेम हो गया कि उसे वे पल भर भी नहीं छोड़ सकते थे। अचानक एक दिन उनकी स्त्री अपने भाई के साथ अपने मायके चली गई। तुलसीदास दौडे़ हुए उसके पीछे गए। यहाँ पर स्त्री के उपदेश के कारण उन्हें वैराग्य हो गया और वे राम की खोज में निकल पड़े। अनेक तीर्थों की यात्रा करते करते वे काशी में आ बसे। यहाँ तथा अन्य स्थानों में उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की, जो अब तक प्रसिद्ध चले आते हैं। अंत में संवत् १६८० की श्रावण-कृष्ण तीज शनिवार को उन्होंने काशी में शरीर छोड़ा।
इन सारांश से स्पष्ट विदित होगा कि उनकी जीवनी कैसी सुघटित रूप से लिखी गई है और यदि यह जाल है तो बड़ा महत्वपूर्ण जाल है कि १५५० से लेकर १६८० तक का पंचांग बनाकर मुख्य-मुख्य घटनाओं का तिथि, वार और संवत् ठीक ठीक दिया जा सका। कदाचित् ऐसे महत्वपूर्ण जाल का दूसरा उदाहरण कहीं खोजने पर भी न मिलेगा।
इस नवीन संस्करण के संबंध में एक विचित्र घटना हुई। ज्यों-ज्यों रामायणा दुहराकर ठीक की जाती थी त्यों-त्यों संशोधित प्रति प्रेस में भेज दी जाती थी। अब संशोधन का कार्य समाप्त हुआ तब