पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१३

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प्रेम था। समय पड़ने पर सब लड़ाई-झगड़े शांत हो जाते थे। एक समय की बात है कि बनारस के पंजाबी यात्रियों में से कुछ लोगों ने पंचायत करके लाला जीमत पर अपराध लगाकर उन्हें जातिच्युत करना चाहा। जब पंचायत हुई तो हमारे मन:गिर नया मागे एक हो गए। परिणाम या कि जो जानिन्टा ना माने थे उन्हें अपनी ही ग्ा ग्ना कठिन होगामीफ पटना मेरे साथ भी हुई। मेरे मित्र गानू जुगुलनिगार के प्रभावानू मालिनाममित जापान गए थे। वहाँ मे लाटने पर गजा गांनीचर के यहाँ एक दावत मे म लोग एक मात्र एक टेबुल । नाग प्रार धैठर जलपान कर रहे थे। उनने में पत्रियों के एक प्रनिटिन व्यक्ति ने प्राफर मुझमे पूछा कि 'पुर लोगे ?" मैने फा कि.. घरफ की कुलफी दीजिए। उन्होंने लारर दे दी। दूनर नि पंचायत फरके उन्नाने का कि इन्होंने विलायतियों के मग पाया है. अनाएर. ये जाति से निराले जाय ।' में बुलाया गया। गुममे पूजा गया कि 'क्या तुमने विलायतियों के नग पेठकर गाना गाया है। मैंने कहा कि 'कौन कहता है. वह मामन भावे।' लाला गोवर्धनदान ने कहा, 'हो, मैंने स्वयं परोसा है। इस पर मैंने पूछा कि 'आपने क्या परोमा'. तो उन्होंने कहा कि 'यरफ की कुलफो।' इम पर मैंने कहा कि पंजाब मे मुसलमान गुजरो से दूध लेस लोग पीते हैं और उन्हें कोई जाति-न्युत मग्ने का स्वप्न भी नहीं देखता । उनी पजाबी सत्रियों में यहाँ इसके विपरीत पाचरण क्या होता है? क्या पजाब में क्सिी काम के करने पर हम निरपराध रहते हैं और यहाँ वही काम करने