पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१४

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मेरी आत्मकहानी
 


पर हम अपराधी ठहरते हैं? अतएव, विलायतियों के साथ बैठकर कुलफी खाना, और वह भी एक खत्री के हाथ से लेकर, कोई अपराध नहीं। यदि बाबू गोवर्धनदास यह समझते थे कि मै एक अनुचित काम कर रहा है तो उन्हे मुझे वहीं रोकना था। उन्होंने तो मुझे अपराधी बनाने में मदद की। अतएव, यदि दंड होना चाहिए तो उनको जिन्होंने जान-बूझकर मुझे गढ़े मे ढकेला और अब मुझ पर दोष लगाते हैं। यह सुनकर तो उनके साथी बडे चिंतित हुए और हो हुल्लड़ मचाकर पचायत समाप्त कर दी गई। इसी संबंध में एक घटना और याद जा रही है। उसे भी यही लिख देता हूँ। हम लोग चार घर खन्ना हैं। हमारा विवाह आदि चार घर मेहरोत्रे, कपूर और सेठो के यहाँ हो सकता है। उस समय हमसे ऊँचे माने जानेवाले ढाई घर खन्ने, कपूर, मेहरे और सेठ होते थे। मेरे छोटे भाई मोहनलाल का विवाह ढाई घर की लड़की से हुआ। इस पर फिर जाति में हल्ला मचा कि यह काम इन्होंने उचित नहीं किया। इन्हे दंड देना चाहिए। यह बात यहाँ तक बढ़ी कि स्वयं हमारे चाचा लाला आत्माराम ने हमारे यहाँ बधाई तक देने के लिये आने का साहस न किया, पर कुछ वर्षों के अनंतर उन्होंने स्वयं अपने पोते का विवाह ढाई घर में किया। वे भीर स्वभाव के थे। अपनी रक्षा की उन्हे बडी चिंता रहती थी। उनके इस स्वार्थमय स्वभाव का एक नमूना और देना चाहता हूँ। मेरे ज्येष्ठ पुत्र कन्हैयालाल का विवाह अमृतमर मे होनेवाला था। मैं उस समय लखनऊ के कालीचरण हाई स्कूल का हेडमास्टर था। कुछ वराती बनारस से आए और मैं