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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१५

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मेरी आत्मकहानी
 


लखनऊ से उनके साथ हो गया। जब हम लोग अमृतसर पहुँचे तो स्टेशनवालों ने असबाब की तौल की बात उठाई। मैंने कहा कि सब माल तौल लो और जो महसूल हो, ले लो। मेरे चाचा साहब इस चिंता में व्यग्र हुए कि हमारा माल अलग कर दिया जाय। इस पर में बिगड गया तब वे शात हुए।

लाला हरजीमल की अवस्था मे ऐसा आशातीत परिवर्तन देखकर मेरे ज्येष्ठ पितामह लाला नानकचंद अपनी स्त्री क्या होनो भतीजो को साथ लेकर काशी चले आए। मेरे पिता ने कपड़े की छोटी-सी दुकान खोली। इसमे उन्हें हरजीमल हरदत्तराय की कोठी से माल मिल जाता था। धीरे धीरे उन्होंने अपने व्यवसाय में अच्छी उन्नति की। क्रमश व्यापार बढ़ने लगा और धन भी देख पड़ने लगा। उनकी दुकान पुराने चौक मे थी। मेरे पिता का विवाह लाला प्रभु- श्याल को ज्येष्ठा कन्या देवकी देवी से हुआ था। मेरे नाना गुजराँवाला के रहनेवाले एक बड़े जौहरी थे। उनकी दुकान अमृतसर में थी। ऐसा प्रसिद्ध है कि वे एक लाख रुपये की ढेरी लगाकर और उस पर गुड़गुड़ी रखकर तमाकू पीते थे। उन्हे बड़ा दंभ था। बिरादरी में जब कही गमी हो जाती तब वे नहीं आते थे। केवल अपनी दुकान की ताली मेज लेते थे। जाति के लोग उनसे असंतुष्ट थे। देवदुर्विपाक से उनके लड़के का देहांत हो गया। मुर्दा उठाने के लिये बिरादरी का कोई नहीं आया। तब उन्हें जाकर लोगों के पैर पड़ना पड़ा और क्षमा माँगनी पड़ी। पुत्र-शोक में वे अपनी स्त्री, छोटे लड़के और तीनों कन्याओं को लेकर काशी चले आए और यहाँ