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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१४१

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१३६ मेरी भात्मकहानी कुछ दिनों के अनंतर मिस्टर घरेखेल हेड मास्टर हुए। उनके समय में अच्छी तरह काम चलता रहा. पर वे हिंदू कालेज के वाइस- प्रिंसपल नियत हुए और उनके स्थान पर एक अन्य सज्जन हेड माटर बने । यद्यपि मैं कई वर्षों तक असिस्टेंट हेड मास्टर रह चुका था, पर मैं इस पद के योग्य न समझा गया । मेरी समझ में इसके दो मुख्य कारण थे-एक वो यह था कि इस संस्था में अधिकारी-पद पर विवासिफिस्ट की नियुक्ति ही हो सकती थी। सभी सांप्रदायिक संस्थाओं में ऐमा होता है। दूसरी बात यह थी कि इस सस्या का यह मुख्य उद्देश्य था कि इसके कार्यकर्ता या तो आनरेरी हो या बहुत कम वेतन पर काम करने को उद्यत थे। अधिक-से-अधिक वेतन १००) था। विवासफी की ओर मेरी प्रवृत्ति न थी और आनरेरी अथवा कम वेतन पर काम करना मेरे लिये असंभव था। जो कोई भी कारण हो, मेरी नियुक्ति नहीं हुई। नई व्यवस्था का पहला आक्रमण मुझ पर हुआ। कदाचिन् यह समझा गया कि इसका स्कूल में बड़ा प्रभाव है। अतएव इसे सबसे पहले ही प्याना चाहिए, तब स्कूल का प्रवन्ध ठीक चल सकेगा। यह बात सच है कि मैं उस समय कूल का ग़-धर्वा, विधाता सब कुछ था । आरंम में ही मेरे नियत कार्य के अतिरिक्त एक दूसरे अध्यापक का, जो उस हिन अनुपस्थित था, अधिक कार्य मुझको दिया गया। मैंने पहले यह कमी नहीं क्यिा था। मुझे बहुत बुरा लगा, पर काम करके घर चला आया। इस कार्रवाई से मैं बहुत व्यथित हुआ और मैने अपना मव रद्द किया कि मुझे अब त्याग-पत्र दे देना चाहिए, इसी में कल्याण 1