के एक दिन पूर्व मेरी छोटी मौजाई का प्रमव में देहांत हो गया।
पर मैं सम्मेलन में सम्मिलित हुआ और उसके कार्यों में भाग लंबा
रहा। सम्मेलन में मैंने देखा कि एक विरोधी दल प्रत्येक पात में मेरा
विरोध तथा पेक्षा करने पर उद्यत था। मैं काश्मीर में रहता था।
वहाँ से इस काम की देख-रेख करने और विरोध का सामना करने
में असमर्थ था। अतएव मैंने प्रसन्नतापूर्वक सम्मेलन को प्रयाग
भाने का समर्थन किया। यह अच्छा ही हुआ।
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हिदी-शब्दसागर
किसी जाति के जीवन में उसके द्वारा प्रयुक्त शब्दो का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है! आवश्यक्ता तथा स्थिति के अनुसार इन प्रयुक शब्दों मे आगम अथवा लोप, तथा वान्य, लक्ष्य एवं द्योत्य भावो में परिवर्तन, होता रहता है। अत: और सामग्री के अभाव में भी इन शब्दों के द्वारा किसी जाति के जीवन की मिन्न-मित्र स्थितियों का इतिहास उपस्थित किया जा सकता है। इसी आधार पर आर्य- जाति का प्राचीनतम इतिहास मस्तुत किया गया है और ज्या-ज्यों सामग्री उपलब्ध होती जा रही है, त्यों-त्यो यह इतिहास ठीक किया जा रहा है। इस अवस्था में यह बात स्पष्ट समझ में आ सकती है कि जातीय जीवन में शब्दों का स्थान कितने महत्त्व का है। आतीय साहित्य को रक्षित करने वथा उसके भविष्य को सुरुचिर और समुज्यन बनाने के अतिरिक्त यह किसी भाषा की सपन्नता या शब्द-