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मेरी आत्मकहानी
 

गमचंद्र शुष्ठ. लाला भगवानदीन और वायु अमीरमिह के अतिरिक्त बाबू जगन्मोन वर्मा, बाबू गमचद्र वमा, पंडित वासुदेव मिश्र, पंडित वचनेश मिश्र, पंडित व्रजभूपणा ओफा, श्रीयुत वेरणी कवि आदि अनेक भजन भी इस शब्द-संग्रह के काम में सम्मिलित थे। शब्द-संग्रह के लिये सभा केवल पुस्तको पर ही निभर नहीं रही। कोश में पुस्तको के शब्दों के अतिरिक्त और भी अनेक ऐसे शब्दों की आवश्यकता थी जो नित्य की बोलचाल के. पारि- भाषिक अथवा ऐसे विषयों के थे जिन पर हिंदी में पुस्तके नहीं थी। अंत सभा ने मुंशी रामलगनलाल नामक एक सज्जन को शहर में घूम-घूमकर अहोरी, कहारो, लोहारो, सोनारो, चमारो, तमोलिया, तेलिया, जोलाहो, भालू और बदर नचानेवाले मदारियो, कूचेवंदा, धुनियों, गाडीवानो, कुश्तीवाजो, कसेगे, गजगीयें, छापेखानेवालो , महाजनों, बजाजो, दलालो, जुआरियो, महावतों पसारियो, साईसों आदि के पारिभाषिक शब्द तथा गहनो. कपडो, अनाजो, पेड़ों बरतनो, देवताओ, गृहस्थी की चीजो, पकवानो, मिठाइयो. विवाह आदि की रस्मों, तरकारियो, सागो, फलो, घासों, खेलो और उनके माधनो,आदि-आदि के नाम एकत्र करने के लिये नियुक्त किया। पुस्तकों के शब्द-संग्रह के साथ-साथ यह काम भी प्राय दो वर्ष तक चलता रहा। इस संबंध में यह कह देना आवश्यक जान पडता है कि मुंशी राम-लगनलाल का इस सबंध का शब्द-संग्रह बहुत संतोष-जनक था। इसके अतिरिक्त सभा ने बाबू रामचंद्र वर्मा को समस्त भारत के पशुओ, पक्षियों, मछलियो, फूलों और पेड़ो आदि के नाम एकत्र