सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
मेरी आत्मकहानी
१६७
 

और उनके सहयोग तथा महायता से कार्य के समाप्त करने मे बहुत अधिक सुगमता हुई है। इनके अतिरिक्त स्वर्गीय पडित बालकृष्ण भट्ट, स्वर्गीय वावू जगन्मोहन वर्मा, स्वर्गीय बाबू अमीर सिंह तथा स्वर्गीय लाला भगवानदीन ने इस कोश के संपादन में बहुत-कुछ काम किया है और उनके उद्योग तथा परिश्रम मे इस कोश के प्रस्तुत करने में बहुत सहायता मिली है।

इनके अतिरिक्त अन्य विद्वानो, सहायको तथा दानी महानुभावो के प्रति भी मैं अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ जिन्होंने किसी न किसी रूप में इस कार्य को अग्रसर तथा सुमपन्न करने में सहायता की है,यहाँ तक कि जिन्होने इसकी त्रुटियाँ दिखाई हैं उनका भी मै कृतज्ञ हूं क्योंकि उनकी कृपा से हमे अधिक सचेत और सावधान होकर काम करना पड़ा है। ईश्वर की परम कृपा है कि अनेक विघ्न-बाधाओ के समय-समय पर उपस्थित होते हुए भी यह कार्य सन् १९२९ मे समाप्त हो गया। कदाचित् यह कहना कुछ अत्युक्ति न समझा जायेगा कि इसकी समाप्ति पर जितना आनंद और संतोष मुझको हुआ है उतना दूसरे किसी को होना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। काशी-नागरी प्रचारिणी सभा अपने इस उद्योग की सफलता पर अपने को कृतकृत्य मानकर अभिमान कर सकती है। इस कोश की समाप्ति पर सभा ने बड़ा आनंद प्रकट किया और बड़े उत्साह तथा समारोह के साथ उत्सव मनाया। सवत् १९८५ की वसंत-पचमी को यह उत्सव मनाय गया। इसमे अनेक लोग बाहर से भी आए तथा संयुक्त प्रदेश की गवमेंट ने बधाई का तार