“हमारा यह सम्मेलन अभी सात वर्ष का बालक है। यदि आप जानना चाहे कि सम्मेलन ने इस छोटी-सी अवस्था में कौन-कौन से कार्य किए हैं तो आपको विदित होगा कि जितना कार्य इस थोडे समय में इस संस्था ने कर दिखाया है उतना कार्य कर दिखाना किसी दूसरी सत्या के लिये कठिन ही नहीं वरन् असंभव है। सम्मेलन हमारी विखरी हुई शक्तियों को एक स्थान में एकत्र करना है। आज दिन हिंदी–प्रेमियों का अभाव नहीं है। जो सहायता आजकल प्राप्त होती है वह पहले नहीं होती थी। जिस प्रकार छोटी-छोटी नदियों और नालों का जल एकत्र होकर एक सुदीर्घकाय नदी का रूप धारण करता है, बिखरी हुई किरणें एकत्र होकर जिस प्रकार प्रकाश फैलाती हैं, उसी प्रकार इस संस्था के लिये साधनों की आवश्यकता है। एक सूत्र में बाँधने के लिये कई शक्तियों की आवश्यकता है। एकता, धर्म, स्वराज्य आदि बधन पारसरिक प्रेम का प्रादुर्भाव कर सकते हैं। यूरोपीय देशों में उसके लिये जो साधन हैं वे हमे प्राप्त नहीं हैं। एक भाषा ही ऐसा साधन है जिसके द्वारा सब लोग प्रेमबंधन में बँध सकते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि मातृमाषा के लिये हृदय में भक्ति हो। भारतवर्ष में एक भाषा की क्या आवश्यकता है? इस सबंध में बहुत कुछ कहा जा सकता है। अत: इस स्थान पर और अधिक कहने की आवश्यकता नहीं जान पड़ती। हजार विरोध होने पर भी हिंदी अभी जीवित है। यह उसकी उपयुक्तता का द्योतक है। महाराष्ट्र, बंगाली, गुजराती आदि अपनी अपनी भाषाएँ आनद से पड़े, अन्यथा वे अपने कर्तव्य से
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