पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९६
मेरी आत्मकहानी
 

इच्छा के अनुसार करें। गर्मी की छुट्टियों में मैं काशी आया तो इस व्यवस्था का पूरा-पूरा ब्योग मिला। मैंने अपनी नीति स्थिर करके सभापतित्व से त्यागपत्र दे दिया और वह स्वीकृत भी हो गया। धान यह थी कि यदि मैं सभापति बना रहता तो जो विशेष अधिवेशन नियमो पर विचार करने के लिय होनेवाला था उममें मुझे वह आसन ग्रहण करना पड़ता और तटस्थ रहकर कार्य-सचालन करना पड़ता, पर मैं चाहता था कि इस कार्य में पूरा-पूरा भाग लूँ। अतएव जून मास में तीन दिन तक विचार होता रहा। नियमो का संशोधन हो जाने पर वार्षिक चुनाव के लिये फिर नाम चुने जाने लगे। इसमें गौड जी ने बड़ी आपत्ति की। वे अपने दल के लोगों को भरना चाहते थे। अंत में यह निश्चय हुआ कि बाबू भगवानदास दोनों पक्षों की बातों को सुनकर जो सूची बना दें वह मान्य हो। ऐसा ही हुआ। इस सूची में गौड़ जी के पक्ष के लोगों की अधिक संख्या थी। अतएव इस आपत्ति से बचने के लिये मैंने एक दूसरा उपाय निकाला। जब चुनाव होने लगा तब मैंने यह प्रस्ताव किया कि जिन लोगों के यहाँ चंदा बाकी है वे कार्यकर्ता या प्रबंध-समिति के सदस्य नियमानुसार नहीं हो सकते। इस पर सूची की जाँच की गई तो विपक्षीदल के लोगों में से अधिकांश लोगों के नाम अलग हो गए और चुनाव हम लोगों के अनुकूल हुआ। मेरी नीति के रहस्य को सभा के सहायक मत्री बाबू गोपालदास जानते थे और किसी को इसका पता न था। इस नियम के कारण बाबू रामदास गौड़ के पक्ष के लोग न कार्यकर्त्ता हो सके और न प्रबंध-समिति के सदस्य ही।