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मेरी आत्मकहानी
 

चढ़ने का एक कारण नागरी-प्रचारिणी पत्रिका में उनकी “विधवा-विलाप" नामक कविता का न छपना भी था। इस प्रकार मनोमालिन्य बढ़ता गया और अंत में सरस्वती में जो यह वाक्य छपा करता था― “सभा के अनुमोदन में प्रतिष्ठिन उमका अंत हो गया। इम अवस्था में उनका जीवन-चरित्र प्राप्त होना और भी कठिन हो गया। पंडित सूर्यनारायण दीक्षित ने किमी प्रकार द्विवेदी जी में उनकी जीवन-घटनाओं को जानने का सफल प्रयोग किया। उनके आधार पर उन्होने उनका जीवन-चरित लिखकर उनके पास भेज दिया। उन्होंने उसे संशोधित करके दीक्षित जी के पास भेजा। उनमे फिर वह मुझे प्राप्त हुआ। इसमे दो मुख्य वाक्य द्विवेदी जी ने बढ़ाए थे। एक स्थान में यह वाक्य था― “आपकी समालोचनाएँ बहुधा जरा कटु हो जाती हैं,” इसको द्विवेदी जी ने इस प्रकार संशोधन किया था―“आपकी समालोचनाएँ जरा तीव्र अधिक हो जाती है।”

लेख के अंत में ये वाक्य थे―“ईश्वर आपको नीरोग और चिरंजीव करे। आपसे हिंदी-भाषा का अभी और बहुत कुछ उपकार होने की आशा है।” इनको काटकर द्विवेदी जी ने ये वाक्य लिखे थे―“द्विवेदी जी में कवित्व, समालोचन और प्रथ-निर्माण इन दोनो शक्यिो का एकत्र अधिष्ठान है। ये बाते किसी विरले ही पुरुप में होती है।’

अंत में जिस रूप में यह कोविदरत्रमाला में छपी वह उस पुस्तक मे देखी जा सकती है।

इस जीवनी के अंत में यह लिखा था कि द्विवेदी जी का स्वभाव