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मेरी आत्मकहानी
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जाय। यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और हिंदी-विभाग खोलने का आयोजन होने लगा। बाबू गोविंददास ने मुझे मालवीय जी के पास भेजा और उपदेश दिया कि वेतन के लिये न अड़ना। हाॅ, पद का ध्यान रखना और युक्ति से काम लेना।

मेरी नियुक्ति आश्विन सन् १९२१ से युनिवर्सिटी में हो गई और हिंदी-विभाग का पूरा-पूरा आयोजन करने का मुझे आदेश हुआ। पीछे से मुझसे पंडित रामचंद्र शुक्ल ने कहा कि मालवीय जी ने मुझे तथा लाला भगवानदीन को बुलाकर पूछा था कि हम श्यामसुंदरदास को हिंदी-विभाग का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, तुम लोगो की क्या सम्मति है। शुक्ल जी ने उत्तर दिया कि हम लोगो को उनके अध्यक्ष होकर आने में कोई आपत्ति नहीं है। जिस दिन मेरी नियुक्ति का निश्चय हुआ उसी दिन संध्या को बाबू ज्ञानेंद्रनाथ बसु ने, जो उस समय युनिवर्सिटी कौसिल के उपमंत्री थे, मुझे पत्र लिखकर इसकी सूचना दी। अब कार्य का आरंभ हुआ। एफ० ए०, बी० ए० और एम० ए० क्लासो में हिंदी की स्वतत्र पढ़ाई का आरंम तो जुलाई सन् १९२२ से ही हो सकता था। इस बीच में इस संबंध का सब कार्य संपन्न किया गया। पाठ्य पुस्तको का चुनाव हुआ और पढ़ाई का क्रम निश्चित हुआ। इस समय इस विभाग में केवल तीन अध्यापक थे। पर अभी तो केवल फर्स्ट ईयर, थर्ड ईयर और फिफ्थ ईयर मे पढ़ाई आरंभ हुई थी, अतएव अधिक अध्यापको की आवश्यकता भी न थी। पर आगे चलकर इसके लिये बड़ा विकट प्रयत्न करना पड़ा।

पहली कठिनाई, जिसका मुझे सामना करना पड़ा, अध्यापन और

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