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मेरी आत्मकहानी
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अधिकारी ने किया इस बेर इजीनियरिंग कालेज के प्रिसपल मिस्टर किंग ने सहायता की और बड़थ्वाल की नियुक्ति हुई। पीछे एक और व्यक्ति के बढ़ाने का आयोजन हुआ। दो विद्यार्थियों में से चुनाव होनेवाला था―एक थे नंददुलारे वाजपेयी और दूसरे थे जगन्नाथप्रसाद शर्मा। मैं वाजपेयी जी को हृदय से चाहता था पर मालवीय जी ने यह कहकर जगन्नाथप्रसाद को नियुक्त किया कि वह देश के लिये जेल हो आया है।

आगे चलकर वेतन का प्रश्न उठा। सब अध्यापको को बहुत कम वेतन मिलता था। किसी को १००) मासिक से अधिक नहीं मिलता था। केवल मुझे २५०) मिलते थे। इस अन्याय को हटाने के लिये बहुत दिनो तक प्रयत्न करना पड़ा, तब कहीं जाकर वेतन बढ़ा। सहायक अध्यापको का वेतन १००)-१०)-१५०) हुआ। मेरे साथ वो विशेष कृपा हुई। जब इस वेतन के प्रश्न ने उत्कट प्रयत्न का रूप धारण किया तब मेरा ग्रेड १५०)-१०-३००) हुआ। युनिवर्सिटी के किसी प्रोफेसर को यह वेतन नहीं मिलता है। केवल असिस्टेंट प्रोफेसरो का यह ग्रेड है। मै प्रोफेसर था और मेरे भली भाँति कार्य चलाने का उपहार यह मिला कि पद प्रोफेसर का रखकर प्रेष्ठ असिस्टेंट प्रोफेसर का दिया गया। मैंने इसे स्वीकार नहीं किया। अंत में जाकर ४००) वेतन मुझे दिया जाने लगा और इसके लिये मैं ध्रुव जी का अनुगृहीत हूँ कि उन्होने बडे जोरो से मेरे पक्ष का समर्थन किया था। मुझे यह सब अनुभव करके कमी-कमी यह संदेह हो जाता था मालवीय जी में हिंदी के प्रति वास्तविक प्रेम है या नहीं। जहाँ