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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२४

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२३४ मेरो भालकहानी (४) इसी वर्ष के जून मास में में नैनीताल गया। बाबू गौरीशकरप्रमाद और पडित रामनारायण मिश्र पहले से गए हुए थे, मैं पीछे से गया। वहां हम लोग राजा बालाप्रसाद के वासस्थान से ठहरे। हम लोग मिस्टर ए० एच० मैकेंजी से मिल और उनसे समामवन को बढ़ाने के लिये गवर्मेट की सहायता मांगी। दो-तीन वर मिलना पड़ा। मिस्टर मैकेंजी ने बड़े ध्यान से हम लोगों की बातें मुनी और उदारतापूर्वक सहायता देने के प्रश्न पर विचार किया। आगे जाकर सभा को २२,००० की सहायता गमेंट से प्राप्त हुई। (५) सिवबर मास मे मुझे घर आया। तीन-चार दिन तक वर का बड़ा वेग रहा । पौडेसे मेरे अंडकोश की वृधि एक नारियल के बराबर हो गई। कई डाक्टर बुलाए गए। सवने परीक्षा करके यह निदान किया कि इसमें मवाद आ गया है। इसे चीरने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। केवल मेरे पुराने मित्र डाक्टर अमरनाथ वैनर्जी ने चीर-फाड़ करने की सम्मति नहीं दी। उन्होंने कहा कि ये इतने कमजोर हो गए हैं कि नश्तर लगते ही इनके देहांत की आशका है। उपचार-द्वारा इसका मवाद निकाला जाय । डाक्टर अचलबिहारी सेठ ने, जो मेरे प्राचीन मित्र वाचू कृष्णवलदेव वर्मा के भाजे हैं और उस समय के थोड़े दिन पहले डाक्टरी पास करके काशी में वस गए थे, इस भार को अपने ऊपर लिया। वे नित्य दोनों समय पाकर मेरी देख-भाल करने लगे। कोइ एक महीने के अनंतर यह व्याधि क्टी और घाव भर गया। साक्टर सेठ ने जिस प्रेम से मेरी चिकित्सा की उसके लिये मैं उनका चिर ऋणी हूँ। वे