पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४६
मेरी आत्मकहानी
 

सब लेखों का संग्रह प्रस्तुत हुआ और इंडियन प्रेस में छपने के लिए भेजा गया। बाबू शिवपूजनसहाय इन लेखों का संपादन कर छपवाने के लिय भेजे गए। अधिकांश काम हो जाने पर ये अपने लड़के की बीमारी के कारण काशी लौट आये, तब बाबू रामचंद्र वर्म्मा ने प्रयाग जाकर इस काम को पूरा किया। इस समय मुझे विदित हुआ कि इस काम में अँधाधुध खर्च हो रहा है। राय कृष्णदास ने जिस प्रकार आयोजन करने का विचार किया था, उसे पूरा करने का काम नागरी प्रचारिणी सभा-सी गरीय संस्था के सामर्थ्य के बाहर था। जिन जिनसे सहायता मिलने की आशा दिलाई गई उनसे नाम-मात्र की सहायता प्राप्त हुई। इस अवस्था में मैं स्वयं प्रयाग गया और ग्रंथ के श्रद्धांजलि-विभाग का कागज तथा जिल्द का कपड़ा बदलवाकर कोई २ हजार रुपये की बचत कराई। इस ग्रंथ की प्रस्तावना मेरे आदेशानुसार पंडित नंद्‌दुलारे वाजपेयी ने लिखी। इसमें जो मत या भाव प्रदर्शित किए गए हैं उन सबके लिये मैं उत्तरदायी हूँ। इसके लिये उत्तरदायी न तो राय कृष्णदास हैं और न पंडित नंद्‌दुलारे वाजपेयी ही। उत्सव के दो-तीन दिन पहले मैं प्रयाग से लौटा तो उसी दिन राय कृष्णदास और बाबू रामचंद्र वर्म्मा ने आकर मुझे सूचना दी कि प्रयाग में कुछ लोग इस उद्योग में हैं कि द्विवेदी जी काशी न आवे और यह उत्सव फीका पड़ जाय। इन दोनों ने आग्रह किया कि मैं और राय कृष्णदास आज ही प्रयाग जायँ और द्विवेदी जी से मिलकर उनके काशी पहुँचने का समय निश्चित कर आवें। लाचार मुझे जाना पड़ा और वहाँ सब बातें निश्चित करके रात के