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मेरी आत्मकहानी
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और प्रबंध-ममिति के ममानदो की कोई वार्षिक सूची नहीं भेजी गई थी और न कोई नया चुनाव ही हुआ था । २९ नववर सन् १९३५ को ८ प्रेमी सूचियाँ बनाकर रजिस्ट्रार के पास भेजी गई जो १९२७-२८. १९२८ २९, १९२५-३०, १९३०-३१, १९३१-३२, १९३२-३३, १९३३-३५. १९३५-३५ की थीं। इन सव सूचियो में एक ही नाम थे. अधिकारियों में से दो की मृत्यु हो चुकी श्री. बाकी सब सभासदी के अधिकार से शून्य थे, केवल दो महाशय अधिकारी थे। बाबू गौरीशंकरप्रमाद ने इन सूचियो को देखकर to forcat 37"how can dead persons function as officc-bemers? It is unthinkable जब यह बात सभी कि इन सूचियों का परिणाम केसा भयानक हो सकता है, तब यह मामला शांत हुआ। एक बात अच्छी हुई कि रजिस्ट्रार ने इन सूचियों को यह कहकर लौटा दिया कि इन उस संस्था का नाम होना चाहिए जिसके कार्यकर्ताओं आदि की ये सूचियाँ है। इस प्रकार यह आधार भी नष्ट हो गया कि कला-परिपद् अव जीवित है। अबतक उसके ८ सभासद जो बचे थे उनको पत्र लिखकर पूछा गया कि क्या आप लोगों को यह स्वीकार है कि कलाभवन नागरीप्रचारिणी सभा में बना रहे। इनमें से पांच महाशयो ने अपनी स्वीकृति दी और ६ जून १९३८ के प्रबंध समिति के अधिवेशन में यह निश्चय हुआ कि "कलाभवन का समस्त प्रबंध एक उपसमिति के अधीन होगा जो प्रति तीसरे वर्ष काशी नागरीप्रचारिणी सभा की प्रवध-समिति- द्वारा अपने सदस्यों में से चुनी जाया करेगी।"